झाबुआ~मैं चाहे ये करू,मैं चाहे वो करू-मेरी मर्जी की तर्ज पर-करते है अधिकतर ज़िले में आने वाले नए जिला मुखिया अपने निवास और कार्यालय पर अनाप-शनाप खर्च~~
अब देखना है की अंत मे इस कार्यालय के बाहर किसके नाम की नेम प्लेट टँगती है~~
कुछ ना कुछ किया कर,पायजामा फाड़ कर तो सिया कर *- बहादुर सागर तालाब के सौंदर्यीकरण हेतु नही है फण्ड, सजावट के लिए है लाखो रुपये~~
अधिकारियों के यह आलम है,तो मुख्यमंत्री और मंत्री कैसे रहेें पीछे....? पिछले 2 वर्षों में मंत्रियों के बंगलो की सजावट में लगभग 37 करोड़ रुपया खर्च~~
झाबुआ। संजय जैन-ब्यूरो चीफ~~
पिछले कई वर्षों से जिले में आने वाले नए मुखियाओं के बीच सजावट हेतु एक होड़ देखी जा रही है। मैं चाहे ये करू,मैं चाहे वो करू-मेरी मर्जी की तर्ज पर ज़िले में आने वाले अधिकतर नए जिला मुखिया सजावट के नाम पर अपने निवास और कार्यालय पर अनाप शनाप खर्च करते चले आ रहे है।
सजावट पर लाखों खर्च की परिपाटी चली आ रही .........................
गौरतलब है कि पिछले कई वर्षों से जिले में आने वाले अधिकतर जिला मुखियाओं द्वारा अपने निवास और कार्यालय पर मरम्मत के नाम पर सजावट में लाखों रुपये स्वाहा करते हुए देखे जा रहे है। यदि पिछले 3 तत्कालीन कलेक्टरो की बात करे तो,सर्वप्रथम कलेक्टर प्रबल सिपाहा ने अपने निवास, कार्यालय,सभागृह एवं वीसी हाल पर मरम्मत के नाम पर सजावट में लाखों रुपये खर्च कर दिए। इसके बाद कलेक्टर सोमेश मिश्रा द्वारा निवास पर पूर्व कलेक्टर द्वारा किया गया रिनोवेशन कार्य पसंद न आने पर उन्होंने भी रेनोवेशन कार्य को बदलकर लाखों रुपये खर्च कर दिए। अंत मे हाल ही में तत्कालीन कलेक्टर रजनी सिंह द्वारा पूर्व में बने आलीशान कार्यालय को पूर्व कलेक्टरों की तरह ही मरम्मत के नाम पर जमीजोद कर दिया और नए सिरे से कार्यालय बनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया था। यह अलग बात रही कि वे इसमें विराजमान नही हो पाई,क्योंकि उनका अचानक स्थानांतरण हो गया। मजेदार बात तो यह है कि नवागत कलेक्टर तन्वी हुड्डा ने भी इस सजावट के होड़ की परिपाटी को जारी रखा है। उन्होंने पूर्व कलेक्टर के द्वारा बनाये गए इंटीरियर और सीलिंग स्ट्रक्चर को पूरी तरह से बदल दिया है एव बना हुआ टेबल भी फिर से बनाया गया क्योंकि कलेक्टर को पहले बना हुआ टेबल छोटा लगा था। कलेक्टर ने बने हुए सम्पूर्ण नए फर्नीचर को तुड़वा कर उनकी पसंदानुसार कार्यालय में नए सिरे से तीन खिड़कियां निकलवा दी ।
* कुछ ना कुछ किया कर,पायजामा फाड़ कर तो सिया कर *
* कुछ ना कुछ किया कर,पायजामा फाड़ कर तो सिया कर* की तर्ज पर अधिकतर ज़िले में आने वाले नए जिला मुखिया अपने निवास और कार्यालय पर अनाप-शनाप खर्च करते है। पहले पीवीसी सीलिंग बन रही थी,जबकि पीवीसी सीलिंग तो एसओआर सूची में है ही नहीं। पहले पीवीसी सीलिंग का पूरा स्ट्रक्चर तोडा गया और अब कलेक्टर तन्वी हुड्डा ने दोबारा पीवीसी की जगह पीओपी का स्ट्रक्चर नए सिरे से बनाया गया है। पीवीसी सीलिंग तो एसओआर सूची में है ही नही। यदि कलेक्टर बिल्डिंग में पूर्व में हुए विभिन कार्यालय और वीसी रूम के सभी पीवीसी कार्यो की जाँच की जाय,तो यह बात बड़ी आसानी से अपने आप साबित हो जाएगी। कलेक्टर यदि नविन कार्यालय पर विभिन्न मुख्य कार्यो का अलग-अलग मद नुसार जैसे की सीलिंग,इलेक्ट्रिक-वायरिंग,फर्नीचर और सिविल आदि पर हुए कुल व्यय का ब्यौरा भुगतान के पहले तलाश कर लेवे,तो सारी स्थिति और भी स्पष्ट हो जाएगी ऐसा मेरा मानना है।
यह है वास्तविक जारी टेंडर......................
जो टेंडर जारी हुआ है,उसमें कार्य के उल्लेख में यह साफ लिखा है कि विभिन्न सरकारी रेवन्यू विभाग की इमारत में अनुरक्षण कार्य हेतु टेंडर जारी किया गया है। पीडब्लूडी सब-डिवीज़न झाबुआ के तहत यह कार्य किया जा रहा है। टेंडर में लागत 19 लाख दर्शायी गयी है,जिसमे कलेक्टर कार्यालय का तो कोई जिक्र ही नही है,जिक्र है तो विभिन्न सरकारी रेवेन्यू विभाग की इमारत में अनुरक्षण के कार्य का। विभिन्न का मतलब तो यही निकलता है कि दो से अधिक इमारतों में अनुरक्षण का कार्य किया जाना है। टेंडर नुसार हम मान लेते है कि विभिन्न इमारत में एक तो कलेक्टर कार्यालय,फिर बाकी इमारत कौन-कौन सी है, जिसमे अनुरक्षण का कार्य चल रहा है......? जब इसके बारे में विभागीय कर्मचारियों से हमने चर्चा की तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया की सरकारी इमारत में सिर्फ मरम्मत की जा सकती है ना की पूरी तरह से पुराने निर्माण को जमीजोद किया जा सकता है। किसी अधिकारी को उनके अनुसार अन्य सुविधा,उपकरण और सजावट करनी होती है,तो उसका खर्च उस अधिकारी को वहन करना होता है।
अधिकारियों के यह आलम है,तो मुख्यमंत्री और मंत्री कैसे रहेें पीछे....?
एक तरफ तो सरकार कर्ज में डूबी हुई है,वही दूसरी ओर मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बंगलो की सजावट पर बेतहाशा रुपये उड़ाये जा रहे है। मप्र में पिछले 2 वर्षों में मंत्रियों के बंगलो की सजावट में लगभग 37 करोड़ रुपया खर्च हुआ है। इसमें से अकेले सीएम हाउस में 26 करोड़ रुपया खर्च हुआ है। पिछले 10 महीने में मंत्रियों के बंगले सजाने में 4.58 करोड़ से ज्यादा खर्च किए गए हैं। सबसे ज्यादा एक करोड़ रुपए सीएम हाउस पर खर्च हुए हैं। इसके बाद सबसे अधिक 56 लाख रुपए पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव के बंगले की साज-सज्जा में लगे हैं। सबसे कम मात्र 1495 रुपए का व्यय खेल एवं युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया व पूर्व मंत्री इमरती देवी के बंगलों पर हुआ हैं। यह जानकारी विस में पांचीलाल मेड़ा के एक प्रश्न के उत्तर में सामने आई है।
अभी तक किये गए करोड़ो के खर्च से तो,नया बंगला और नई बहुमंजिला बिल्डिंग ही बन जाती.........................
इस मामले में हमने आम जन से चर्चा की तो अधिकतर ने व्यंगपूर्ण कहा कि अभी तक पूर्व के जिला मुखियाओं और छोटे-मोटे अधिकारियों द्वारा मरमत्त के नाम पर किये गए खर्चो को जोड़ दिया जाय,तो यह आंकड़ा करोड़ो के पार हो जाएगा। इतनी भारी राशि से तो नया बंगला और नई बहुमंजिला बिल्डिंग ही बन जाती। जिसमे सभी छोटे-मोटे अधिकारियों को व्यवस्थित आवास भी मिल जाता। कुछ लोगो ने ठहाके लगाते हुए कहा कि* कुछ ना कुछ किया कर,पायजामा फाड़ कर तो सिया कर * जिले में यह सजावट की होड़ तो कुछ ऐसी ही दिख रही है। कुछ पुराने कर्मचारियों ने बेहद रोचक एवं तथ्यपूर्ण जानकारी बतायी की यह कार्यालय नखेतरी है,जिसने भी इस कार्यालय को छेड़ा है वह इसमें विराजमान नही हो पाया है। पहली बार अल्प समय में लगातार तीन कलेक्टरो का स्थानांतरण भी हमने पहली बार देखा है। अब देखना है की अंत मे इस कार्यालय के बाहर किसके नाम की नेम प्लेट लगती है। खैर, इन अधिकारियों का क्या जा रहा है...? खर्च तो हमारा ही हो रहा है,सजावट की राशि हम नियमित रूप से टैक्स के रूप में जो अदा करते चले आ रहे है।
तालाब के लिए फंड नहीं और सजावट के लिए फण्ड ही फण्ड.........................।
तालाबो के लिए तो प्रशासन के पास फण्ड ही नहीं है और इनके पास सजावट के लिए फण्ड ही फण्ड है। गत वर्ष मै और मेरे मित्र वरिष्ठ पत्रकार संजय जैन द्वारा जनहित में बहादुर सागर तालाब के सफाई अभियान को तत्कालीन गंभीर कलेक्टर सोमेश मिश्रा जी, विभिन्न विभागों और आमजन के जन सहयोग के सानिध्य में प्रारंभ किया था। उस वक्त नपा ने हमारे पास तालाबो हेतु कोई फण्ड नही है यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया था। इसके बाद भी हम निराश नही हुए,तत्कालीन कलेक्टर ने हमारा हौशला बनाया रखा और उन्होंने विभिन्न विभागों से समय-समय पर हमे उचित सहयोग भी दिलवाया। यह तय हुआ था कि अगले वर्ष भी गत वर्ष की तरह सफाई अभियान की मुहिम जारी रहेगी। दुर्भाग्यवश कलेक्टर सोमेश मिश्रा जी का स्थानांतरण हो गया। इस वर्ष हमने जनवरी में तत्कालीन कलेक्टर रजनी सिंह से इस अभियान के बारे में चर्चा की तो उन्होंने तो पहले हमें आश्वासन दिया। फिर अंत मे हमें यह कह कर टाल दिया कि आप दोनों को ही तालाबो की चिंता है,बाकी आमजन में से कोई भी इस बात को लेकर मेरे पास क्यों नही आता है। शायद उन्हें गांधीजी के बारे में नही पता था,की वे भी अकेले ही थे। खैर,मेरी शिकायत पर तालाबो पर किये गए व्यय की जांच की गयी और यह साबित भी हो गया है कि नपा द्वारा घोर आर्थिक अनियमितता की गयी है। अब तो कलेक्टर से हमें यही आस है कि वो दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही कर देवे। रही बात तालाबो के सफाई अभियान की, वह तो अब हम अगले वर्ष ही देखेंग
.....................जितेंद्र सिंह राठौर-नगर कांग्रेस अध्यक्ष-झाबुआ
टेंडर को दिखाती हूँ.................
मेरे जिले में आने के पूर्व से ही कार्यालय का कार्य चल रहा था,मुझे इस बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है। मै टेंडर को दिखवाती हूँ,फिर ही कुछ आपको बता पाऊँगी।
......................तन्वी हुड्डा-कलेक्टर-झाबुआ
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