झाबुआ~80 साल पुरानी बावड़ी-हुआ 47 साल बाद इंदौर मे ऐसा हादसा,जिसमें एक साथ 36 मौतें हुई ................

खूनी रहा है बावड़ी का इतिहास,पहले भी गई थी दो मासूमों की जान...........

कहा खो गया संघ .....? शायद ही इंदौर कभी भूल पायेगा-आमजन ..............
 
झाबुआ। संजय जैन~~

 रामनवमी के अवसर पर स्नेह नगर के पास पटेल नगर इंदौर में श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर परिसर में बनीं बावड़ी के ऊपर की छत धंसने से कई लोग बावड़ी में गिर गए थे। भगवान की भक्ति में सभी लोग डूबे हुए थे,लेकिन उन्हें क्या पता था कि जिस जगह वह बैठे हैं,ठीक उसी के नीचे मौत काल बनकर उनका इंतजार कर रही थी। हादसे में अब तक 36 लोगों की मौत हो चुकी है। श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में घटी भयावह घटना ने देशवासियों को झकझोर कर रख दिया है। बावड़ी की छत धंसने की वजह से हवन-पूजन और मंत्रोच्चारण की जगह चीख-पुकार सुनाई देने लगी थी। जान गंवाने वालों में महिलाओं से लेकर पांच साल तक का बच्चा शामिल है।

रात भर बाहर आते रहे शव ..............
घरों में मातम पसरा हुआ है और पीड़ित परिवार मंदिर प्रबंधन पर अपना गुस्सा जाहिर कर रहा है। इस घटना को लेकर जांच की जा रही है लेकिन सवाल है कि अफसरों पर निलंबन जैसी कार्रवाई करने से क्या हासिल होगा....? क्या निर्दोष लोगों की जिंदगी वापस आ जाएगी....? इस घटना को लेकर बड़ी लापरवाही सामने आई है, क्योंकि अधिकारी जनप्रतिनिधि और ट्रस्ट के पदाधिकारी,सबको इस बात की खबर थी कि स्लैब के नीचे बावड़ी है लेकिन किसी ने कोई एक्शन नहीं लिया। कईयों ने अपनी पत्नियों को खोया तो कईयों ने अपने बच्चों को। इतना ही नहीं बीते दिन एक साथ एक ही गली से 11 शव की अंतिम यात्रा निकाली गई थी। ऐसे में सभी की आंखें नम हो गई थी।

47 साल बाद इंदौर में ऐसा हादसा ............................
47 साल बाद इंदौर में ऐसा हादसा हुआ है जिसमें एक साथ 36 मौतें हुई है। इससे पहले 1976 में जहरीली शराब कांड में करीब 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। जिसमें 7 महिलाएं भी शामिल थी। उसके पहले 1970 में पिपलियापाला में नौका डूबने से 21 लोगों की मौत हुई थी। वहीं 47 साल बाद अब बालेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में दर्दनाक हादसे में 36 लोगों की जाने गई है। जिन्हें बड़ी मशक्कत के बाद 80 साल पुरानी बावड़ी से बाहर निकाला गया है।

क्या है बावड़ी का इतिहास....?
पटेल नगर में जहां बावड़ी हादसा हुआ, वहां पहले खेत और लगभग 9 लाख पेड़ लगे हुए थे। स्थानीय नागरिको ने बताया कि यह बावड़ी होलकर कालीन है। पहले यह खुला रहता था और बावड़ी में सीढ़ियां बनीं हुई थी। उस समय पटेल नगर में जितने भी घरों का निर्माण हुआ, उसमें बावड़ी के पानी का ही इस्तेमाल किया गया था। यहां मंदिर के नाम पर ट्रस्ट बनाने के बहाने बगीचे और बावड़ी पर अवैध कब्जा किया गया। नगर निगम ने ही बावड़ी पर स्लैब डालकर 40 साल पहले बंद कराया था।

खूनी रहा है बावड़ी का इतिहास,पहले भी गई थी दो मासूमों की जान...........
मंदिर ट्रस्ट में पूर्व पार्षद सेवाराम गलानी अध्यक्ष हैं और वे एक बिल्डर भी हैं। ट्रस्ट द्वारा बगीचे की जमीन पर मंदिर बनाने की घोषणा हुई तो स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। लोगों का मानना है कि मंदिर और बगीचा कुछ चुनिंदा लोगों की संपत्ति न होकर सार्वजनिक है। 80 फीट की गहराई वाले बावड़ी में पहले भी कई लोगों के गिरने की खबर सामने आई है। 1980 से 85 के आसपास यह सुसाइड पाइंट हुआ करता था। कुछ साल पहले इसी बावड़ी में गिरने से दो बच्चों की मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद नगर निगम ने बावड़ी पर लोहे की जाल बिछा दी थी। उस वक्त आईडीए का नाम इंप्रूवमेंट ट्रस्ट था।

क्या टल सकता था हादसा....?
सवाल है कि क्या इतना बड़ा हादसा टल सकता था...? बता दें कि रामनवमी पर हर साल मंदिर में हवन का आयोजन परिसर से बाहर होता था। लेकिन इस साल मुरली सबनानी-सचिव,मंदिर ट्रस्ट ने लोगों को परिसर के अंदर हवन करवाने का निर्णय लिया। घटना के दौरान वह भी मंदिर में ही मौजूद थे और हादसे का शिकार हुए। फिलहाल वह अस्पताल में भर्ती हैं।

वार्ड 63ं के पार्षद को भी ज्ञात था................
 बावड़ी की दीवार से सटाकर ठीक पीछे निगम के हाजिरी कक्ष में मौजूदा पार्षद मृदुल अग्रवाल का कार्यालय संचालित होता है। इस क्षेत्र के लोग निगम संबंधित कार्यो के लिए उनसे मिलने यहीं पर आते हैं। पार्षद इस कक्ष में बैठते भी थे। रहवासियों ने मंदिर निर्माण संबंधित शिकायत पार्षद को भी की थी। यानी पार्षद को भी ज्ञात था कि मंदिर में बनी बावड़ी पर निर्माण है। यदि वे चाहते तो ट्रस्ट, रहवासियों के साथ सामंजस्य कर निगम के माध्यम से बावड़ी को अतिक्रमणमुक्त करवा सकते थे।


दस एमएम के सरिया जंग से सड़ चुका था आधा,कैसे सहता 55 लोगों को बोझ....?
बावड़ी के उपर 20 साल पहले कोटा स्टोन बिछाकर तीन-चार इंच क्रांक्रिट भर दिया गया, उसमें बड़ी खामियां थी। छत को बगैर बीम कॉलम के बिछाया गया। दस एमएम के सरिया जंग से सड़ चुका था,तो फि र 55 लोगों को बोझ कैसे सहता ....? बावड़ी को ढकने के लिए न तो किसी तकनीकी विशेषज्ञ की मदद ली और न ही कभी मरम्मत के बारे में सोचा। यह लापरवाही बड़े हादसे की वजह बनी। नक्शे के विपरित गलत निर्माण होने पर बुलडोजर से तोड़ने की धमकियां देने वाले नगर निगम के अफसर भी इस गलत निर्माण पर आखें मूंदे हैं। बावड़ी नगर निगम की सूची शहर के खतरनाक भवनों में भी शामिल नहीं थी,जबकि अफसरों को पता था कि बावड़ी के उपर मंदिर का निर्माण हुआ है। मंदिर प्रबंधन ने नोटिस के जवाब में खुद ही बावड़ी पर निर्माण होने का हवाला निगम को दिया भी था।

                  *** बॉक्स खबर ***
कहा खो गया था संघ....? सेना को बुलाने की आवश्यकता क्यो पड़ी....?
हादसा गुरुवार सुबह 11 से साढ़े 11 बजे की बीच हुआ था। दुर्घटना के करीब सवा घंटे बाद फायर ब्रिगेड और बचाव दल मौके पर पहुंचा था,उसके पास पर्याप्त संसाधन तक नहीं थे। हादसे के कई घंटे बाद एनडीआरएफ ,सेना को बुलाने का निर्णय की आवश्यकता क्यो पड़ी...........? सेना रात करीब पौने नौ बजे मौके पर पहुंची। दोपहर सवा तीन बजे के बाद बावड़ी से एक भी जीवित व्यक्ति नहीं निकला,निकले तो केवल शव। वैसे आमजन से हुई चर्चा की हम बात करे तो जनता का रोष संघ के प्रति वाजिब भी है,ऐसा हमारा मानना है। संगठन संघ की हम बात करे तो,जैसा की सभी जानते है नागपुर महाराष्ट्र संघ की जन्मस्थली है तो इंदौर संघ की राजधानी है। हादसे के तुरंत बाद संघ के कारसेवकों का मदद हेतु ना पहुंचना और आज तक नदारद रहना,वह भी राम लाला के दर्शन हेतु पहुचे श्रद्धालुओ के साथ इतना बडा़ मार्मिक हादसा घट जाने पर भी,यह तो एक बड़ा सवाल संघ पर खड़ा हो गया है। शायद इसी कारण के चलते कई घण्टो बाद सेना को बुलाने का निर्णय लेना पड़ गया था।

कहा खो गया संघ .....? शायद ही इंदौर कभी भूल पाएगा.....................
जब इस हादसे पर लोगो की प्रतिक्रिया जानने के लिए उनसे चर्चा की तो अधिकतर लोगों का कहना था,अब दो-चार को निलंबित और ट्रस्ट के एक या दो लोगों पर मामला दर्ज कर प्रशासन वाहवाही लूट लेगा और जनता भी कुछ दिन बाद इसे भूल जाएगी। ऐसे अधिकारियों को तो शहरभर में काला मुंह करके लगातार 3 दिन तक घूमाना चाहिए, सिर्फ निलंबन से क्या होगा...? कुछ लोगो ने बेहद रोषपूर्ण एक महत्वपूर्ण और अलग पहलू हमें बताया,जिस पहलू पर हादसे पर मीडिया की खबरों में आज तक जिक्र ही नही किया गया। उन्होंने बताया कि संघ हादसे के बाद से कहा खो गया है....? कर्मठ कार्यकर्ता हादसे के स्थान पर नदारद क्यों रहे....? यह एक विचारणीय प्रश्न है। क्या संघ का भी राजनीतिकरण हो चुका है...? वह भी उनकी राजधानी में ही। इनका लक्ष्य सिर्फ चुनाव जितने और सत्ता पाने तक का ही बन कर रह गया है क्या....? राम लाला के दर्शन करने आये लोगो के साथ इतना भीषण हादसा होने के बाद,घटनास्थल पर एक भी कारसेवक अपने गणवेश में मदद करने पहुँचा तक नही तभी शायद हादसे के कई घंटे बाद सेना को बुलाने का निर्णय लिया गया। यदि कारसेवक अपनी टीम के साथ तुरंत पहुच जाते तो शायद यह हादसा इतना मार्मिक और दिल दहलाने वाला नही होता, ऐसा हमारा मानना है। संघ के इस व्यवहार को इंदौर शायद ही कभी भूल पायेगा।

                                                                          

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