बड़वानी~अब्दुल कलाम होना मुमकिन है, बस शर्त ये है, मुल्क के नाम जिंदगी की सुबह-शाम हो जाये~~


बड़वानी/शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्षन प्रकोष्ठ द्वारा डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम की चौथी पुण्यतिथि के अवसर पर ‘कलाम साहब का व्यक्तित्व और उनके विचार’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन हुआ। इसमें इतिहास के प्रोफेसर डाॅ. एम. एल. गर्ग, युवा वक्ता रवि केवट, परिचर्चा की संचालक एवं संयोजक प्रीति गुलवानिया और डाॅ. मधुसूदन चौबे ने विचार व्यक्त किये।

सर्वप्रथम डाॅ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के चित्र का पूजन-अर्चन अजय चांदोरे और ज्योति ओझा ने किया।

प्रीति गुलवानिया ने 15 अक्टूबर, 1931 से 27 जुलाई, 2015 तक के डाॅ. कलाम के लगभग चौरासी वर्ष के जीवनवृत्त की जानकारी दी और उनके द्वारा किये गये संघर्ष, अध्ययन, लेखन, रक्षा प्रणाली के विकास में योगदान, जनता के राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल  की जानकारी दी।

डाॅ. एम. एल. गर्ग ने कहा कि मिसाइलमेन डाॅ. कलाम साहब ने अपने योगदान से भारत के रक्षा तंत्र को अत्यंत मजबूत कर दिया।
युवा विद्यार्थी रवि केवट ने कलाम साहेब के अनमोल वचनों को सुनाकर सभी को प्रेरित किया। रवि ने बताया कि कलाम साहेब कहते थे कि सपने वह नहीं जो सोते हुए देखे जाते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं, जो आपकी नींद उड़ा दें। प्रतीक्षा करने वालों को उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं।
मुल्क के नाम सुबह-शाम हो जाये
डाॅ. चौबे ने परिचर्चा में कलाम साहेब की उपलब्धियों के बारे में बताते हुए उन पर लिखी स्वयं की कविताएं भी सुनाईं। उन्होंने सुनाया कि - गर चाहत है कि सभी के दिलों पर नाम हो जाये,  तो चल यूं करें कि अपन अब्दुल कलाम हो जायें, अब्दुल कलाम होना मुमकिन है, बस शर्त ये है, मुल्क के नाम जिंदगी की सुबह-शाम हो जाये, मैंने सुना है मौत पर बादल बहाते हैं आंसू अगर, आदमी से बड़ा दुनिया में आदमी का काम हो जाये। दूसरी कविता सुनाते हुए उन्होंने कहा कि- न कोई जादू, न टोना टोटका, न कोई तंत्र-यंत्र है, अब्दुल कलाम होने के लिए इक छोटा सा मंत्र है। ऊँचे ख्वाब देखें, विपत्तियों से लड़कर, मेहनत से आगे बढ़ते जायें, मानव के आगे एवरेस्ट भी बौना है, हिम्मत से हिमालय चढ़ते जायें, किताबों में मित्र खोजें और मित्रों में खोजें किताबें, अक्षर-अक्षर जुटाते जायें, अपनी मेधा से बनायें दुनिया को खूबसूरत, जाने से पहले खुद को लूटाते जायें।
आभार अजय चांदोरे ने व्यक्त किया। सहयोग रवीना मालवीया, आवेश खान, दीपांश ने किया।


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