बड़वानी~बच्चों के कल्याण के लिए बनाया गया है किशोर न्याय अधिनियम-जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री कोठे~~
बड़वानी /ऐसे बच्चे जिन्हे देखरेख व संरक्षण की आवश्यकता है तथा ऐसे बच्चे जो किसी अपराध में लिप्त है। उनके लिए किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण ) अधिनियम 2015 बनाया गया है। बच्चों के मन में विश्वास जगाकर नियमों एवं अधिनियमों के तहत बच्चों के कल्याण के लिए किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण ) अधिनियम 2015 के तहत कार्य किया जाता है। किशोर न्याय अधिनियम में कार्यरत इकाईयां अपना कार्य ईमानदारी एवं पूर्ण निष्ठा के साथ करे। जिससे किसी बच्चे का जीवन बनाया जा सके।
उक्त बाते जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री रामेश्वर कोठे ने बुधवार को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में आयोजित किशोर न्याय ( बालकों की देखरेख और संरक्षण ) अधिनियम 2015 में कार्यरत इकाईयों की कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कही। कार्यशाला में पुलिस अधीक्षक श्री डीआर तेनीवार, विशेष न्यायाधीश श्री दिनेशचन्द्र थपलियाल, द्वितीय अपर जिला न्यायाधीश श्री राकेश सोनी, तृतीय अपर जिला न्यायाधीश श्री आशुतोष अग्रवाल, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव श्री हेमंत जोशी, यूनिसेफ के जिला कार्डिनेटर श्री शिवप्रतापसिंग उपस्थित थे।
कार्यशाला के दौरान जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव श्री हेमंत जोशी ने बताया कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत जिले में किशोर न्याय बोर्ड, बाल कल्याण समिति, जिला बाल सुरक्षा इकाई, चाईल्ड लाईन, थाने में गठित विशेष बाल पुलिस इकाई, बाल गृह सिलकुआं कार्यरत है। साथ ही उन्होने अपचारी बालक कैसे विधिक सहायता प्राप्त कर सकता है इसके बारे में भी बताया।
कार्यशाला में किशोर न्याय बोर्ड की प्रधान न्यायाधीश एवं अध्यक्ष सुश्री रश्मि मण्डलोई ने किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत किशोर न्याय बोर्ड की कार्यप्रणाली, किशोर न्याय बोर्ड में परिवाद, प्रतिवेदन एवं अपचारी की प्रस्तुति की प्रक्रिया विस्तार से बताई। उन्होने बताया कि पुलिस के पास किशोर के द्वारा अपराध करने की शिकायत आती है तो पुलिस को किशोर के सामने सादे कपड़े में रहना है, उसे हथकड़ी या बेड़ी नही पहनानी है। किशोर को हवालात में नही रखना है। 8 घंटे के अंदर विशेष किशोर पुलिस कल्याण अधिकारी के भारसाधन में रखा जायेगा। अभिरक्षा में लेने के 24 घंटे के अंदर किशोर न्याय बोर्ड के सदस्य के समक्ष किशोर को प्रस्तुत किया जायेगा। साथ ही किशोर के अभिभावक को अभिरक्षा में लेने की सूचना भी देना होती है।
कार्यशाला के दौरान तृतीय अपर जिला न्यायाधीश श्री आशुतोष अग्रवाल ने किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत बताया कि किशोर द्वारा अपराध किये जाने पर बालक की पहचान नही प्रकट की जा सकती है। अगर कोई समाचार पत्र, पत्रिका या अन्य किसी सोशल मीडिया के माध्यम से बालक की पहचान प्रकट की जाती है, तो यह अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसा करने वाले के विरूद्ध सजा एवं जुर्माना का प्रावधान भी कानून में है। साथ ही उन्होने लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम पाक्सो एक्ट 2012 के बारे में भी जानकारी देकर इसके प्रावधानों के बारे में बताया।
कार्यशाला में सीडब्ल्यूसी के पूर्व सदस्य श्री रूपेश पुरोहित ने बालसंरक्षण इकाई के द्वारा की जाने वाली कार्यवाही, श्री राहुल सोनी ने किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत बालक को रखने हेतु प्रावधानित विभिन्न इकाईयों, सुश्री ललिता ने चाईल्ड लाईन, सुश्री एकरा मिन्हास ने बाल संरक्षण पुलिस इकाई, न्यायधीश सुश्री आभा गवली ने किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत बालक की आयु के निर्धारण के प्रावधान के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
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