*बडवानी~नर्मदा घाटी में फिर होगी विशाल संकल्प – सभा ; 31 जुलाई,बडवानी,म.प्रदेश*~~
*नर्मदा हमारी जीवनरेखा : नहीं मरणरेखा|*~~
नर्मदा घाटी के 34 सालों के संघर्ष के बाद, हम घाटी के निवासी सरदार सरोवर प्रभावित किसान,मजदूर,मछुआरे हो या व्यापारी...सभी को फिर से जीने मरने की चुनौती लेनी और देनी है| 31 जुलाई को गाव खाली नहीं हो सकते,नहि 30,000 परिवारों की संपदा हम डुबोने या उजाड़ने दे सकते है| बिना पुनर्वास, जबरन विस्थापन, कानून, अदालतों के विविध फैसले और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ होगा |
केंद्र और गुजरात शासन मिलकर पहाड़ी आदिवासी और मैदानी किसानी क्षेत्र के आज भी मूलगाव में बसे हजारों परिवार, लाखों पेड़, मकान, दुकान या मंदिर-मस्जिद सब कुछ नजरंदाज करते हुए सरदार सरोवर में बाँध की पूरी उंचाई यानी 139 मीटर तक पानी भरने का निर्णय थोपना चाहते है| इसका आधार है 2018 तक के रिपोर्ट में भी नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने, राज्य सरकारों के नाम पर प्रकाशित की झूठी जानकारी| हर एक को पुनर्वसित करने का झूठा दावा और महाराष्ट्र की भी साथ लेकर बढ़ते कदमों को रोकना ही अनिवार्य है| मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को मात्र बिजली का लाभ भी न देते हुए, कच्छ और सौराष्ट्र को भी प्यासा रखकर अडानी-अंबानी जैसों की बड़ी कंपनियों को अधिक बख्शा जा रहा है, कच्छ-सौराष्ट्र के सूखाग्रस्त और किसानों को कम| गुजरात के विस्थापित भी पीने के पानी के लिए भी आक्रोशित है और बांध के नीचेवास के मछुआरे, किसान, उद्योगपति भी |
तो मध्य प्रदेश ने 192 गाव और 1 नगर में निवासरत परिवारों को सभी अधिकार तथा पुनर्वास स्थल पर पीने के पानी से निकास तक सभी सुविधाएँ प्राप्त होने तक; राज्य के नुकसान की पूरी भरपाई ही नहीं, बिजली का लाभ भी पाने तक डूब नामंजूर करना अन्याय ही होगा|
महाराष्ट्र और गुजरात के आदिवासियों का पुनर्वास भी नहीं हुआ है पूरा| वन अधिकार से भूमि अधिकार तक, भू-संपादन भी अधूरा है सैकड़ों परिवारों का| पुनर्वसाहट में सिंचाई हो या घर प्लाट की हकदारी अगर बाकी है तो कैसे माने पुनर्वसित? गुजरात और महाराष्ट्र के विस्थापितों को 01.01.1987 की कट ऑफ दिनांक लगाकर हजारों परिवारों को अघोषित छोड़ा है| मध्य प्रदेश की तुलना में यह विषम व्यवहार भी अन्याय है | रोजगार का मात्र मिला है आश्वासन, नहीं प्रत्यक्ष अमल|
मछुआरों की 37 सहकारी समितियों को मिली है मान्यता लेकिन जलाशय पर हक़ नहीं | केवटों को घाट पर, कुम्हारों को एवं छोटे-बड़े दुकानदार व्यापारियों को भूखंड पर मिला नहीं अधिकार| इन भूमिहीनों को मूलगाव छोड़ना संभव नहीं | किसान-मजदूरों को भी जमीन के या भूखंड के बदले अनुदान? अधूरे अंमल के साथ सर्वोच्च अदालत के फैसलों का भी हो रहा है उल्लंघन !
इस स्थिति में सत्य छिपाना संभव नहीं| हम नहीं मानेंगे अन्याय, अत्याचार| नर्मदा में पानी कहां तक भरेंगे, यह गुजरात ने नहीं, मध्य प्रदेश ने भी तय करना होगा| नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण जैसी आंतरराज्य संस्था आज मात्र पति-पत्नी के हाथ में है| 30 बड़े बांधो के विस्थापन, पर्यावरण के अलावा जल नियोजन के प्रावधान और समस्याओं पर निर्णय के लिए अक्षम है आज का प्राधिकरण|
तो कौन करेगा तय घाटी का भविष्य? नर्मदा हमारी माता, हमसे है उसका अनोखा नाता | देश और दुनिया की है यह सबसे पुरानी सभ्यता ! इस अवैध डूब या अवैध रेत खनन से विनाश के कगार पर ढकेला जा रहा है | सूखा और बाढ के चक्र में फसाया गया है| अब पीढियों पुरानी संस्कृति और प्रकृति को बचाने वालों को ही डुबाने का फैसला होने जा रहा है|
तो फिर से उठ पड़ेंगे हम| 2017 के बाद फिर चुनौती लेंगे हम| 31 जुलाई के रोज आप सबको गवाह रखकर, आपके साथ समर्थन का आधार लेकर हम लेंगे गहरा संकल्प| हमारा 34 सालों का आंदोलन अन्यायकारी डूब से हर बार टकराते हुए 15000 परिवारों को जमीन, हजारों को मकान के लिए भूखंड, पुनर्वास स्थल और विविध हक़ और लाभ लेकर भी हम नहीं हटेंगे, जब तक हजारों को पूरा न्याय नहीं मिलता ; जब तक नर्मदा के साथ हो रहा अन्याय भी दूर नहीं|
हमारे देश भर के साथी, सामाजिक संघटन, संस्थाए, कार्यकर्ता हो या शोधकर्ता; कलाकार; पत्रकार एवं माध्यमकर्ता, विस्थापित, नर्मदा घाटी के हर जिलें के और देश भर के आए जरूर | विकास की अवधारणा पर सवाल उठाने वाले सभी विचारशील, संवेदनशील मान्यवर भी आमंत्रित है ही|
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