झाबुआ~ब्लैक लिस्टेड कंपनी का वाइट खेल-क्या अब जिला अस्पताल के मौन ऑक्सीजन प्लांट पर सिर्फ दिखावे के लिए होगी मॉकड्रिल~~

क्यों जिला अस्पताल आश्रित है,सिर्फ लिक्विड ऑक्सीजन पर~~

जबकि कोरोना काल मे भी कमी नही रही थी प्लांट से ऑक्सीजन की~~

झाबुआ। ब्यूरो चीफ.-संजय जैन~~


 कल भी इसी समाचार पत्र ने जिला प्रबंधन की अनियमितता के बारे में खबर मुख्यता से प्रकाशित कर प्रशासन का ध्यान आकर्षित भी किया गया था। करोड़ो रूपये के व्यय के बाद भी जिला अस्पताल की इतनी दयनीय स्थिति क्यो है....? यह तो प्रशासन ही जाने...............

ब्लैक लिस्टेड कंपनी का वाइट खेल............

विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकरी अनुसार कोरोना काल के दौरान लगभग हर जिले में तुरंत ऑक्सीजन प्लांट लगाया गया था। जिसकी लागत करीब सवा करोड़ थी। इनका मेन्टेनस एओवी इंटरनेशनल को दिया गया था। जिसे आगे चलकर सेवा में कमी के कारण उक्त कंपनी को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था। इसके बाद नया खेल इसी कंपनी ने खेला और मात्र नाम बदलकर आईएम हेल्थकेयर के नाम से मेन्टेनस का कार्य दोबारा सांठगांठ कर हथिया लिया। जबकि उपरोक्त दोनो कंपनी का पता एक ही है,सिर्फ नाम बदल कर सारा खेल कर दिया गया। बताया जाता हैं कि कोई प्रभावी अधिकारी सुलेमान शेख इन कंपनियों का गुप्त रूप से भागीदार है,जिसके चलते यह सफेद खेल हो गया और सिर्फ नाम बदलने से ही ब्लैक लिस्टेड कंपनी दोबारा वाइट लिस्टेड हो गयी। सरकार और प्रशासन को इस ओर ध्यान देना बेहद जरूरी है।

डॉक्टर्स मशीनों की शिकायत करते रहे और 9 करोड़ का भुगतान हो गया...............

कल दैनिक भास्कर में * डॉक्टर्स मशीनों की शिकायत करते रहे और 9 करोड़ का भुगतान हो गया * नामक शीर्षक से खबर का प्रकाशन हुआ था ,जिसके चलते ब्लैक लिस्टेड कंपनी का वाइट खेल उजागर तो हो रहा है। कल प्रकाशित खबर अनुसार एएमसी का कार्य एचएचएल हाइट्स के पास था। बताया जा रहा है कि इस कंपनी में भी प्रभारी अधिकारी जावेद अख्तर गुप्त रूप से भागीदार है। इससे साफ प्रतीत होता है उपरोक्त तीनो कंपनियां प्रभावी अधिकारियों के संरक्षण में सारा खेल खेल रही है।

क्या अब जिला अस्पताल के मौन ऑक्सीजन प्लांट पर सिर्फ दिखावे के लिए होगी मॉकड्रिल....

अब जिला अस्पताल के मौन ऑक्सीजन प्लांट पर सिर्फ दिखावे के लिए मॉकड्रिल की चर्चा मीडिया जगत पर जोरो में है। यह बात तय है कि क्या प्रशासन अब सिर्फ मौन प्लांट जो कि कई महीनों से बंद पड़ा हुआ है,वहाँ मॉकड्रिल कर सरकार की आंखों में धूल जोखने की तैयारी में तो नही लगा हुआ है...?

क्यों जिला अस्पताल पिछले कई महीनों से सिर्फ लिक्विड ऑक्सीजन पर आश्रित ....?



सूत्रों नुसार जिला अस्पताल पिछले कई महीनों से सिर्फ लिक्विड ऑक्सीजन पर आश्रित है। जबकि कोरोना कॉल के समय प्रदेश के कई जिलों के साथ झाबुआ में भी ऑक्सीजन प्लांट लगाया गया था। जब इस प्लांट के बारे में हमने वास्तविक जानकारी ली तो पता चला,प्लांट तो कई महीनों से बंद है। इससे साफ प्रतीत हो रहा है कि जिला अस्पताल प्रबंधन अपने निजी स्वार्थ के चलते सिर्फ लिक्विड ऑक्सीजन पर निर्भर हो गया है। प्रशासन ईमानदारी से इसकी जांच करे तो वास्तविक स्थिति सामने आ जायेगी।

क्या मॉकड्रिल के दिन सिविल सर्जन शिफ्टिंग का बहना देकर साफ बच निकलेंगे...?

ऑक्सीजन प्लांट विगत कही महीनों से बंद पड़ा हुआ है। ऐसे में सरकार की तरफ से मॉकड्रिल के निर्देश आते है तो सिविल सर्जन शिफ्टिंग का पत्र आज से तैयार कर साफ बच निकलने की तैयारी कर तो नही चुके है....? साथ ही आराम से निश्चिंत हो कर चीर निद्रा में सो तो नही गए है...? ऐसे अधिकारी को तो तुरंत पद से हटाना उचित होगा,ऐसा हमारा मानना है।

ऑक्सीजन प्लांट टेक्नीशियन ने कई बार प्लांट बंद है,यह सूचित भी कर दिया है..............



ऑक्सीजन प्लांट टेक्नीशियन कई बार प्लांट बंद है ,यह बात उनके अधिकारियों को कई बार सूचित भी कर चुका है। बावजूद इसके बाद भी उनके कान पर जूं तक नहीं रेगी। यह वही टेक्नीशियन जिसने कोरोना कॉल के दौरान अपने दिन रात एक कर प्लांट से ऑक्सीजन की नाम मात्र भी कमी नहीं आने दी थी। हां,हम बात कर रहे है झाबुआ के पवनेंद्र सिसोदिया की,जिसे कोरोना कॉल के दौरान उनकी काबिलियत और ईमानदारी के चलते पूर्व कलेक्टर सोमेश मिश्रा उन्हें प्लांट प्रबंधक भी नियुक्त कर दिया था। जिसकी वखत शायद आज कुछ भी नही है,जिला अस्पताल प्रबंधन की नजरों के सामने..... अपने निजी स्वार्थ के चलते,ऐसा लग रहा है।

पाठक पढ़ता है सबको पाठ..............



कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर दबी जुबान से हमारी टीम को बताया कि गौरव पाठक को जिला अस्पताल का माय-बाप बना कर अधिकारियों ने हम पर शासन करने के लिए उसे थोप दिया है। हम चाह कर भी नीतिगत कार्य नहीं कर पा रहे है और जो इसका साथ दे रहे,वह सब लाखों में खेल रहे है और प्रशासन की आंखों का तारे बने बैठे है। कुछ ने बताया कि हमको तो पाठक के कर्मचारियों को भी नमस्ते करना पड़ता है। जबकि सिविल सर्जन के पास 2 मैनेजर है,लेकिन वे किसी पाठक के कर्मचारी माली और सलीम के साथ ही राउंड पर निकलते है और दोनी मैनेजर चुपचाप उनके पीछे पीछे चलते ह,ै सिर्फ अपने हर माह की तनख्वाह के आहरण हेतु...............

कही कलेक्टर भी पाठक के आभामंडल में तो नहीं....?

सूत्रों अनुसार पाठक की पहुँच झाबुआ के नेताओं सहित ऊपर तक है। इस झांकी के चलते ही अस्पताल के ड्रेसर सुनील कानूनगो अभी तक स्टूवर्ड के पद पर कई वर्षों से काबिज है। जो सभी को पाठक का खास हूँ कहते हुए,अपने से नीचे पद वालों को नीचा दिखाता रहता है। फिर भी आज तक कोई भी अधिकारी उसे हटाकर उसके मूल पद पर भेजने की पहल तक नही कर पाया है। प्रशासन को अपनी शक्ति का इस्तेमाल करना ही होगा,अन्यथा वे भी बहुत जल्द पाठक के आभामंडल से आकर्षित होकर औरो की तरह ही पाठक के कर्मचारी बन जाएंगे...................
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