झाबुआ~जिम्मेदारों की निष्क्रियता के चलते,बुनियादी स्कूल झाबुआ बना * बे-बुनियादी स्कूल * .......
झाबुआ ब्लॉक का एक मात्र अंग्रेजी माध्यम का स्कूल होने के बावजूद भी...................
गत वर्ष बुनियादी स्कूल परिसर में पड़ा मिला था शव,बुनियादी सुविधाओ का अभाव........
झाबुआ। ब्यूरो चीफ -संजय जैन~~
नगर में संचालित बुनियादी स्कूल में विभाग के अधिकारियों द्वारा नियमों की अनदेखी की जा रही हैं। जिम्मेदारों की निष्क्रियता के चलते बुनियादी स्कूल झाबुआ बन चुकी है बे-बुनियादी स्कूल.......... बुनियादी स्कूल झाबुआ की दयनीय स्थिति से सभी जिम्मेदार अच्छी तरह से वाकिफ भी है। बावजूद इसके किसी के कान पर अभी तक जूं तक नहीं रेगी है,जो जिम्मेदारों की निष्क्रियता का प्रतीक बन चुका है। वही दूसरी ओर कलेक्टर के आदेश की धज्जिया अन्य विभागों के अधिकारियो की तरह ही इस विभाग के अधिकारियो द्वारा भी उड़ाई जा रही है। एक मात्र अंग्रेजी माध्यम का स्कूल होने के बावजूद भी इस पर किसी भी जिम्मेदार का ध्यान ही नही। स्कूल की दयनीय स्थिति होने के कारण गरीब अभिभावकों को स्थिति नही होते हुए भी मजबूरी के चलते,उन्हें अपने बच्चो का दाखिला शहर के महंगे निजी स्कूल में करवाना पड़ता है। इस स्कूल के निर्णय जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय, डीपीसी कार्यालय और ऐसी ट्राइबल तीनों विभागों द्वारा लिए जाते है ै। अत: असुविधाओं को दुरुस्त करने में परेशानी आती है।
था जिम्मेदारों के मुँह पर बहुत बड़ा तमाचा .................
अभी गत वर्ष एक नशेड़ी द्वारा ज्यादा नशा कर लेने के चलते बुनियादी स्कूल परिसर में उसका शव पड़ा हुआ मिला था ,जो जिम्मेदारों के मुँह पर बहुत बड़ा तमाचा भी था। स्कूल में मरे हुए जानवरो का मिलना,जगह-जगह शराब की टूटी खाली बोतलो,सिगरेट के ठुठे का पाया जाना,सुरक्षा के कोई इंतजाम,पिने के पानी की व्यवस्था,भृत्य की नियुक्ति ओर शौचालय का न होना,इत्यादि उपरोक्त तमाम दयनीय स्थिति के बारे में खबरों का सतत प्रकाशन मय फोटो सहित प्रकाशित भी होती रही है। बावजूद इसके किसी भी जिम्मेदार ने अपने दायित्व का निर्वाह गंभीरता से नहीं किया,यदि उस समय रहते वे चेत जाते तो यह स्थिति शायद उत्पन्न ही नहीं होती। इस घटना के बाद सभी जिम्मेदारों पर गंभीर प्रश्न यह उठा था कि आखिर वह नशेड़ी व्यक्ति स्कूल परिसर मेें कहा से और कैसे आ पाया था.....?
अतिरिक्त कक्ष में चल रहा स्कूल ........
मजेदार बात तो यह है की यह स्कूल हकीकत में पहले से प्राइमरी स्कूल था। अब इसी स्कूल में मिडिल,हाई ओर इंग्लिश मीडियम स्कूल भी संचालित की जा रही रही है,वह भी अतिरिक्त कक्ष में और अनेक असुविधाओं के साथ....... गौरतलब है कि जो स्कूल आज उमवि के नाम से जानी जाती है,स्टेट टाइम से इस स्कूल में दरबार हायर सेकण्डरी के नाम से स्कूल संचालित होती थी। आपको बता दे कि यह भवन उमवि के मापदंडों को कही से कही तक पूरा भी नहीं करता है,जबकि एक्सीलेंस स्कूल के लिए तो अलग से नए भवन बनाने का प्रावधान है। जिम्मेदारों को इसे संज्ञान में लेकर त्वरित नियमानुसार निर्णय लेना चाहिए।
न सुरक्षा,न शौचालय और न ही पीने का पानी,यह तो है * बे-बुनियादी स्कूल * ..........
कुछ समय पूर्व वास्तविक स्थिति जानने के लिए हमारी टीम द्वारा इस स्कूल का दौरा किया गया था। तब हमने पाया था कि यहाँ पर बच्चों के लिए बुनियादी सुविधा पीने का पानी और शौचालय तक नहीं था। हमारी टीम ने जब बच्चो से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि हमें पिने के पानी ओर शौच के लिए स्कूल में बने कर्मचारियों के घर में जाना पड़ता है,ऐसे में हमारे साथ कोई घटना हो जाय तो इसका कौन जिम्मेदार होगा.....? विशेष कर छात्राओं ने बताया हमारे साथ कोई अनहोनी न हो जाय इसका भय हमें सदा बना रहता है। आज भी स्कूल में मूलभूत सुविधाओं की स्थिति जस की तस बनी हुई है। गत वर्ष नशेड़ी का शव मिलने क ी बड़ी घटना हो जाने के बाद भी आज तक सुरक्षा के कोई इंतजाम नही किये गए है।
क्या है नियम....
माध्यमिक शिक्षा मण्डल बोर्ड के नियमों के अनुसार हाई स्कूल के लिए 4500 वर्ग फीट भूमि होना चाहिए,जिसमें 2500 वर्ग फीट में भवन तथा 2000 वर्ग फीट का मैदान होना चाहिए। इसी प्रकार हायर सेकंडरी के लिए 5500 वर्ग फीट भूमि का नियम है, जिसमें 3500 वर्ग फीट में भवन तथा 2000 वर्ग फीट का खुला मैदान होना चाहिए। लेकिन बुनियादी स्कूल में एक ही परिसर में विभिन्न स्कूल संचालित कर रहे हैं।
सभी जिम्मेदारों को स्वत: जाकर अवगत कराया था .......
मेरे द्वारा पिछले 3 वर्षो से डीपीसी ओर जिला शिक्षा अधिकारी को समय समय पर और नए-नए अधिकारियो के बदले जाने पर भी स्कूल की इस दयनीय स्थति के बारे में सतत बताया जा रहा था। लेकिन सभी मोटी चमड़ी के अधिकारियो के कानो तक जूं भी नहीं रेगी और अंत में,मैंने हताश होकर मेरी बालिका का ऐडमिशन शहर के महंगे निजी स्कूल केशव में करवा दिया हैं।
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भोपाल पत्र भेजा है.......................
शौचालय की स्वीकृति व राशि हेतु भोपाल पत्र भेजा है। राशि आते ही शौचालय का निर्माण तुरंत कर दिया जाएगा। यह राशि आने के बाद बाकी सुविधाओ के लिए भी भोपाल पत्र भेजेंगे।
*** बॉक्स खबर ***
बना रखी है एक दूसरे पर जिम्मेदारी थोपने की परिपाटी,तीनों विभागों ने...................
फोटो में साफ़ यह बाते साफ -साफ नजर आ रही है की शौचालय की स्थिति कितनी दयनीय है। मजेदार बात तो यह है की दीवार पर पेशाबघर तो अंकित है,लेकिन वह महिला है या पुरुष के लिए यह तो अंकित ही नहीं है। पूरा शौचालय गंदगी और कूड़ा कर्कट से पटा हुआ है। अन्य फोटो में सुरक्षा दीवाल टूटी हुई और जर्जर स्थिति में साफ नजर आ रही है जिसे फांदकर अपराधिक तत्व बड़े आसानी से स्कूल परिसर में दाखिल हो जाते है। 2 वर्ष मिली नशेड़ी की लाश भी इसी टूटी हुई दीवाल की ही देंन है। गौरतलब है यह स्थिति कई वर्षो से है फिर किसी जिम्मेदार का ध्यान ही नहीं है,जबकि स्कूल के कुछ निर्णय जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय,कुछ निर्णय डीपीसी कार्यालय और चुकि आदिवासी जिला होने के कारण कुछ निर्णय ऐसी ट्राइबल विभाग द्वारा लिए जाते है। लेकिन जब शिकायत असुविधा की आती है,तब जिम्मेदारी उपरोक्त तीनो विभाग एक दूसरे पर थोपकर अपनी -अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते है। यह जिम्मेदारी थोपने की परिपाटी तीनो विभाग की कई वर्षो से चली भी आ रही है ,जिसका परिणाम सभी के सामने है.......... जिले के मुखिया को इस ओर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है,ऐसा मेरा मानना है ।
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