झाबुआ~डॉक्टर के पर्चे पर मिलनी चाहिए नींद की जो दवा,जो मेडिकल स्टोर पर मिल रही आसानी से~~
शेड्यूल एच ड्रग लाभ के लिए बिना प्रिस्क्रिप्शन के बेच रहे कुछ फार्मासिस्ट-सेहत के लिए हानिकारक~~
झाबुआ। ब्यूरो चीफ -संजय जैन~~
शराब का नशा तो किसी से छुपता नहीं, लड़खड़ाती जुबान और टेढ़ी-मेड़ी चाल बिना कुछ कहे ही सब बयां कर देती है। पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी को शराब का नशा कम सा लगने लगा है। युवा ऐसे नशे की गिरफ्त में आ चुके हैं, जो उन्हें बार में बैठकर अपनी इमेज खराब किये बिना जेब में रखी कुछ दवाओं से मिल जाता है। युवा एक गोली खा ले तो उसे शायद बचा जा सकता है,लेकिन गोलियां खाना तो नशा करने वालों के लिये आम बात हो गई है। इस तरह दवाओं को नशे के लिये इस्तेमाल करना उनकी सेहत के लिये बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
सेहत के लिए हानिकारक ..............
सरकार ने ऐसी दवाएं जो बिना डॉक्टर के पर्चे पर नहीं दी जा सकती ,उनका शेड्यूल एच ड्रग में शामिल किया है। शेड्यूल एच ड्रग से आशय यही है कि ऐसी दवाओं को यदि बिना कंसल्टेंट के प्रिसक्राइब किये खाया जाए तो यह सेहत के लिए हानिकारक है। ज्यादा मात्रा में जरूरत से अधिक लिया जाए तो जानलेवा भी साबित होती हैं। ऐसी दवाएं आसानी से हासिल कर आजकल शहर में एडिक्शन के लिए उपयोग की जा रही हैं। खास बात ये हैं कि उनके बिना पर्चे के ऐसे कई दवा काउंटर है,जहां पर सहजता से प्राप्त किया जा सकता है।
पकड़ पाना संभव नहीं ............
शेडयूल एच ड्रग केवल पीड़ित व्यक्ति को ही प्राप्त हों और दुरुपयोग न हो,इसके लिए कानून तो बना है,लेकिन स्वास्थ्य विभाग जीवन से खिलवाड़ के मुद्दे पर भी उसी पुराने ढर्रे पर है। शहर में ऐसी दवा दुकानों पर कार्रवाई को लेकर विभाग के जिम्मेदारों का कहना है कि शिकायत होने पर इस पर सीधे तौर पर कार्रवाई की जा सकती है। जब तक कोई आगे आकर इसकी शिकायत कोई न करे तो ऐसी दवा दुकान या उसके संचालक को पकड़ पाना संभव नहीं है।
बड़ा कोई लाभ नहीं .................
डॉक्टर के बिना प्रिसक्रप्शन के जो दवा दुकानदार ऐसी दवाइयां बेच रहे हैं उसमें बहुत बड़ा कोई लाभ नहीं है। 50 और 100 रुपए से लेकर समाज के युवाओं और फिर गलत राह पर चल निकले लोगों को झोंक दिया जाता है। अल्प्राजोलम 90 पैसे के हिसाब से मान लीजिए 9 रुपए की 10 गोलियां हैं तो इसको 100 रुपए में हासिल किया जा सकता है। इसी तरह ओपिओइड ग्रुप में दर्द निवारक मार्फीन जैसे इंजेक्शन को कुछ रुपए ज्यादा देकर खरीदा जा सकता है।
रिकॉर्ड ही नहीं मिलता...............
कई दवा दुकानें हैं जिनके पास ऐसी शेडयूल एच ड्रग का रिकॉर्ड ही नहीं मिलता। तलाशी ली जाए तो सच्चाई सामने आ सकती है,लेकिन साल भर में ड्रग इंस्पेक्टरों और संबंधित स्वास्थ्य विभाग के द्वारा खानापूर्ति के अंदाज में काम होता है, जिससे किसी का भला नहीं केवल समाज को खोखला होने के रास्ते पर छोड़ दिया जाता है। नियम यह है क हार्मफुल ड्रग का रिकॉर्ड होना चाहिए पर रिकॉर्ड के नाम पर बस खानापूर्ति ही होती है।
ये रास्ता अपनाया जा रहा है .................
नशीली, नींद की गोलियां और अति वेदना में काम आने वाले मार्फीन ग्रुप के इंजेक्शन अब कंसल्टेंट के यहां पर पॉलीक्लीनिक में उपलब्ध करा दिये जाते हैं। इससे होता यह है कि इनका दुरुपयोग कुछ हद तक रोका जा सकता है, लेकिन भारत जैसे मुल्क में जहां पर मुनाफा ही सब कुछ है,वहां पर ऐसी प्रिसक्रिप्शन आधारित दवाओं को नियंत्रण कर पाना आसान नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके लिए दवा विक्रेता को समाज का सहयोग करना होगा,तभी इसमें कुछ सुधार हो सकता है। केवल कुछ डॉक्टरों के अपने दवा स्टोर में सलाह के बाद केवल पॉलीक्लीनिक में इनको देते रहना संभव नहीं है।
नशे के लिये उपयोग में आ रहीं ये दवाएं काम ........................
एलप्रेक्स, ट्राइका,एटीवन,लोराजीपाम,रिवोट्रील, क्लोनाजीपाम ऐसी दवाएं हैं,जिनका उपयोग नशे के लिये किया जाने लगा है। इन दवाओं को ज्यादातर नींद न आना,दर्द और तनाव को दूर करने वाले पेशेंट्स को दिया जाता है। लोग इन दवाओं को अपनी सहूलियत के लिये तो लेते हैं, साथ ही इनका प्रचार-प्रसार करने से भी पीछे नहीं हटते,जिससे इनका सेवन करने वालों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। डॉक्टर मरीजों के लिये इन दवाओं का उपयोग करते हैं,लेकिन लोग इसे अपना शौक पूरा करने के लिये कर रहे हैं।
इनका हो रहा दुरुपयोग...
* नींद की गोलियां
* नशा पहुंचाने वाली ड्रग
* मार्फीन ग्रुप के इंजेक्शन
* रेजिस्टेंस पैदा करने वाले एण्टी बायोटिक
यह बहुत बड़ी समस्या है ..................
हजारों ऐसे युवा हैं जो केवल ऐसी दवाओं पर निर्भर होकर नशा कर रहे हैं। सैकड़ों परिवार हैं जो इस तरह आसानी से मिलने वाली नशीली दवाए नींद की दवाओं के कारण ही परेशान हैं। इस पर अंकुश तो लगाना ही चाहिए। परिवार इससे लगातार तबाह हो रहे हैं।
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