* बड़वानी ~राजनीति मध्यप्रदेश की इस सरकार से नहीं , पूर्व की सरकार और केंद्र के गठजोड़ की !*~~

*महाकाय सरदार सरोवर से लाभ नहीं, पुनर्वास पूर्ण नहीं तो पानी कैसे भरेगी मध्यप्रदेश की सरकार ?*~~

  *गुजरात को सरदार सरोवर से उपलब्ध पानी किसानों, सुखाग्रसतों के बदले कंपनियों और पर्यटन को क्यों *~~



          मध्य प्रदेश और गुजरात के बीच उठा, सरदार सरोवर संबंधी विवाद अब सुर्ख़ियों में जरुर है लेकिन उस पर की गई गुजरात के मुख्यमंत्री तथा उप-मुख्यमंत्री की टिप्पणी न हि सही कानूनी दायरे में नहीं सत्य पर आधारित है| इतनी विशेष नदी तथा महाकाय बांध और घाटी परियोजना के तहत बने या बन रहे अन्य बांधो पर गुजरात के नेताओं से उपरी स्तर के तथा कानूनी परिणाम को नजरंदाज करते हुए दिए जा रहे बयान  साबित करते है कि ‘राजनीति’ मध्य प्रदेश नहीं, गुजरात से ही बढ़ाई जा रही है | नर्मदा जलविवाद न्यायाधिकरण से ही उसके अनुसार नर्मदा में उपलब्ध पानी की निश्चित मात्रा, जलप्रवाह संबंधी 40 सालों तक की आकड़ाकीय जानकारी उपलब्ध न होने के कारण, 28 दशलक्ष एकड़ फीट की मात्रा मानकर चार राज्यों में बंटवारा किया गया| उसी के अनुसार मध्यप्रदेश को 18.25 दशलक्ष एकड़ फीट (दलएफी), गुजरात को 9 दलएफी, राजस्थान को 0.5 दलएफी, और महाराष्ट्र को 0.25 दलएफी का आबंटन है, लेकिन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र का हिस्सा सरदार सरोवर जलाशय से नहीं तो नर्मदा की कछार से लेना है! निर्मित बिजली के 56% हिस्सा मध्य प्रदेश का, 27% महाराष्ट्र का तो 16% गुजरात का और जलाशय के पानी में 91% गुजरात और 9% राजस्थान का यही हिसाब है|
        मध्य प्रदेश के सरदार सरोवर के उपरवास के क्षेत्र में, नर्मदा के जलग्रहण क्षेत्र का 83 % विस्तार मध्य प्रदेश में ही होते हुए, 29 बड़े और 135 मझौले बांधो में se कई बने है, तो उनकी नहरों से किसानों को लाभ देना है, यह भी ट्रिब्यूनल के फैसले से स्पष्ट है| म.प्र. ने अपनी जरुरते पूरी करते हुए, हर साल की बारिश याने बरसात के पानी का जायजा लेते हुए गुजरात के लिए पानी छोड़ना है, यही फैसला है | 28 दशलक्ष एकड़ फीट से अधिक पानी जिस साल बहेगा, उस साल इस अधिक पानी की मात्रा में भी मध्य प्रदेश को 73, गुजरात को 36, महाराष्ट्र को 1 व राजस्थान को 2 प्रतिशत पानी पर हक इसी फैसले अनुसार तय है। हर साल की उपलब्ध पानी की मात्रा, ट्रिब्यूनल ने कहां है, 1 जुलाई के रोज उपरी जलाशय कहां तक भरे हैं और वहां से कितना पानी उपलब्ध हो सकता है, नीचे छोड़ने के लिए, यह देखकर समय पत्रक तक करना है। म.प्र. का यह हक गुजरात नकार नहीं सकता।
       वह म.प्र. के लिए बिजली का अधिकार भी गुजरात न केवल नकार रहा है बल्कि नदी पात्र में स्थापित मुख्य बिजली घर का कार्य 2016 में भी और पिछले साल से आज तक बहुतांश समय बंद रखा है। गुजरात ने यह म.प्र. से छोड़ा गया पानी पूर्णतः नहरों में मोड़कर बिजली निर्माण को दुर्लक्षित करने की साजिश के रूप में दिया है जो गैरकानूनी है। सरदार सरोवर की कुल 1450 मेगावाट की क्षमता में से 1200 मेगावाट की क्षमता तो इसी बिजली घर की होते हुए उसे बंद रखकर मात्र 250 मेगावाट की क्षमता का नहर बिजली घर ही चलाया जा रहा है। इस पर म.प्र. शासन ने आपत्ति लेना स्वाभाविक है, क्योंकि 192 गांव, 1 नगर, हजारों हेक्टर्स अति उपजाऊ जमीन, जंगल, तथा 6400 करोड़ रू. का पूंजीनिवेश के बाद कोई लाभ नहीं पाने की स्थिति किसी भी राज्य शासन को कैसे मंजूर हो सकती है ?
वह गुजरात की यह हठधर्मिता कि सरदार सरोवर में पूरा 139 मीटर तक पानी भरा जाए, वह भी बांध के दरवाजों की क्षमता की जांच-परीक्षा के लिए, यह पूर्णतः बेबुनियाद हैं। मध्यप्रदेश के 13 जिलो में पिछले साल की तुलना में भी इस साल आज तक ही कम पानी बरसा है और आने वाले महिनों में क्या स्थिति बनेगी, यह तय नहीं है। पिछले साल म.प्र. में भाजपा सत्ता पर होते हुए गुजरात ने पानी भरने की मांग नहीं की, जबकि बांध तो पूरी ऊंचाई तक जून 2017 से ही बनकर, गेट/दरवाजे भी बंद होकर खड़ा है | पिछले दो सालों से यह मांग शिवराजसिंह शासन के समक्ष कभी नहीं की गयी | तो क्या इस साल का गुजरात का हठाग्रह ही राजनीति नहीं है ?
      गुजरात के दरवाजों की खोलने-बंद करने की या जो भी जाँच की बात हो रही है, इससे बांध की कार्यशीलता पर कितना भरोसा रखा जा सकता है, यह भी स्पष्ट है| एक तो गुजरात ने सालों पहले बनाये हुए गेट्स/दरवाजे ही जल्दबाजी में लगाकर बांध का कार्य पूरा किया, यह बात कुछ साल पहले ही जाहीर हो चुकी है| तो अगर बाढ़ आयी, जैसी 2013 में आयी थी, तो क्या इस बांध से हा:हाकार मचेगा ? पानी पर नियंत्रण संभव होगा या नहीं ?
      मध्य प्रदेश के लिए बड़ा सवाल विस्थापितों के पुनर्वास का भी है| आज भी सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में जबकि 30000 से अधिक परिवार बसे है, जिनके घर/खेत संपति भू-अर्जित हो चुकी है या कुछ पात्रता पर निर्णय की राह देख रहे है और इनका संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ है: तथा पुनर्वास स्थल पर स्थलांतरित परिवारों को भी कानूनन सभी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हुई, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के 2000, 2005 एवं 2017 के फैसले के अनुसार तथा मध्य प्रदेश की नीति और अनेक आदेशों के तहत प्रावधानों के आधार पर पुनर्वास के लाभ मिलना, हजारों के लिए बाकी है, तब उनके घर/खेत/गाँव एवं गाँव के सभी सांस्कृतिक धार्मिक स्थल, उद्योग, व्यापार, और हजारों पेड़...... सब पानी में डूबोना बिलकुल ही असंभव है| गैरकानूनी और अन्यायपूर्ण भी!
        मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव ने नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को पत्र लिखकर बिजली का हिस्सा न देने के लिए गुजरात से 229 करोड़ रु. की मांग की है और 6000 घोषित विस्थापित मूल गाँव में बसे है एवं 8500 परिवारों की पात्रता के लिए अर्जीया GRA में प्रलंबित है, येबी   आकड़े पेश किये है| 2982 परिवारों के 2 हेक्ट. जमीन के लिए 60 लाख रु. के दावे भी प्रलंबित होने की बात भी इस पत्र में है| इन दोनों के निराकरण तक 139 मी. तक पानी भरना संभव नहीं, यह मध्य प्रदेश की भूमिका सच्चाई पर तथा कानूनी आधार पर ली गई है| हम इसका स्वागत करते हुए चाहते है कि मध्य प्रदेश शासन अपने दावों की आकड़ो की फिर से एक बार जाँच करे |उनके आंकड़े बढ़ सकते हैं, कम नहीं हो सकते |
          मध्यप्रदेश शासन राजनीति नहीं कर रही, अब उनसे सामने आयी सच्चाई से जाहिर है कि भूतपूर्व मध्यप्रदेश, गुजरात और केंद्र शासन ने मिलकर ही कई सालों से राजनीतिक चाल चली थी, जिसकी अब पोलखोल हुई है |
          मध्यप्रदेश शासन के मंत्री ही नहीं, जनता ने भी राज्यहित और जनहित की सोचकर सत्य समझना और भूमिका तय करना जरूरी है |

*वाहिद मंसूरी, बालाराम यादव, भागीरथ धनगर, कैलाश यादव, रणवीर तोमर, कमला यादव, सनोबर बी मंसूरी, श्यामा मछुआरा, मेधा पाटकर*

*राहुल यादव 9179617513*


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