धार~मंदिर भूमि विक्रय का आरोप, पुजारी ने कहा झूठी है शिकायतें हम जांच के लिए तैयार ~~

शासन संधारित मंदिरों के विवाद में ग्राम लाबरिया का नाम भी जुड़ा, लोहारीखुर्द का विवाद अभी चल ही रहा है ~~

धार ( डाॅ. अशोक शास्त्री )।

 शासन संधारित मंदिरों की शिकायतों को लेकर त्वरित निराकरण की प्रक्रिया ना होने के कारण विवाद तुल पकड़ते जा रहे है। ताजा मामला ग्राम लाबरिया में शासन संधारित भगवान देव धर्मराज मंदिर से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर के पुजारी मदन चौधरी को लेकर गांव का एक धड़ा मंदिर की भूमि को विक्रय करने का आरोप लगा रहा है। इसको लेकर पूर्व में भी आवेदन दिए जा चुके है। सोमवार को शिकायती धड़ा हाथों में तख्तियां लेकर कलेक्टर से मिलने पहुंचा था। जहां उन्होंने एक ज्ञापन सौंपकर अपनी शिकायत दर्ज कराई है। इस विवाद की मूल जड़ में राज्य सामान्य निर्धन वर्ग कल्याण आयोग का एक प्रस्ताव है। जिसमें मंदिर के पुजारी को स्थाई पट्टा सहित मंदिर के पास की जमीन का पट्टा मिलने का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजने की बात शामिल है। इसके बाद मंदिर पर काबिज होने की होड़ मच गई है जिसके चलते पुजारी के विरुद्ध शिकायतें की जा रही है। इस मामले में पूर्व के आवेदनों में जांच हो चुकी है। इसके बाद भी विवाद थम नहीं रहा है। 
पुजारी परिवार की 3 पीढ़ी की सेवा 
देव धर्मराज सरकारी मंदिर बेहद छोटा मंदिर है। इसमें गायरी-गुर्जर समाज के देवता विराजित है। इस मंदिर में पुजारी के तौर पर समाज के ही मदन चौधरी सेवा दे रहे हैं। सेवा देने वाले पुजारी परिवार की मदन तीसरी पीढ़ी है। इनको शासन से मानदेय भी मिलता है। इनके खिलाफ लगातार शिकायतें की जा रही है। दरअसल मंदिर भूमि पर पुजारी परिवार का मकान बना हुआ है। मकान वर्षों पुराना है, लेकिन समय के साथ विस्तारित हो गया है। इसको लेकर अतिक्रमण करने का आरोप लग रहा है।
भूमि विक्रय का आरोप 
सोमवार को ज्ञापन सौंपने आए लोगों ने पुजारी पर मंदिर की करीब ढ़ाई बीघा भूमि को विक्रय करने का आरोप भी लगाया है। यह बेहद संगीन आरोप है। शासन अधीन भूमि किसी भी कीमत पर विक्रय नहीं की जा सकती है। इस मामले में पुजारी मदन चौधरी ने बताया कि सभी आरोप झूठे है। कभी भी शासन जांच कर लें। मंदिर की खुली भूमि से मंदिर तक जाने के लिए रास्ते का विवाद था। हमने भूमि की सीमाएं कम करके प्रवेश का रास्ता बड़ा कर दिया। इसके बाद कुछ लोगों ने पूजन-पाठ और अन्य कार्यक्रम को लेकर और भूमि की बात कही। इस पर मंदिर भूमि का सुरक्षा घेरा और छोटा करके जगह छोड़ी गई। इसके बाद भी विवाद खड़ा किया जा रहा है। हमारा किसी से कोई विवाद नहीं है। हम सभी शिकायतों की जांच के लिए तैयार है। 
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बाहरी हस्तक्षेप बंद हो
सरकारी मंदिरों में बाहरी हस्तक्षेप होने का मुख्य कारण प्रशासन की अनदेखी है। सरकारी मंदिरों में दूसरों के कार्य दखल से विवाद खड़े हो रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण ग्राम लोहारीखुर्द का मामला है। जहां पर दो समुदाय में वैमनस्य फैल गया है। यहां भी शासकीय मंदिर में ग्राम के एक पक्ष के लोगों ने चंदे से काम कराया। दूसरे पक्ष ने मंदिर से बेदखल करने का आरोप लगाया। इस विवाद में अब जयस सामने आ गया है। दो दिन पूर्व बड़ा धरना प्रदर्शन भी हो चुका है। इसी तरह लाबरिया के मंदिर को लेकर विवाद खड़ा किया जा रहा है। 
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शासन अधीन 1200 मंदिर जिले में 
जिले के शासन अधीन मंदिरों की स्थिति किसी से छूपी नहीं है। जिले में 1200 से अधिक सरकारी   मंदिर है। इनमें 50 के लगभग आयुक्त अधीन भी है। इन मंदिरों के पास व्यवस्था संचालन के लिए कृषि भूमियां भी मौजूद है।  तमाम बेहतर स्थितियों के मध्य मंदिरों की स्थिति बदहाल है। अधिकारियों के पास हितग्राहीमूलक योजनाओं एवं अन्य योजनाओं का इतना बोझ है कि मंदिरों की सुध लेने के लिए समय ही नहीं है। हालात सिर्फ जिले में  ही खराब नहीं है। करीब 30-40 मंदिरों के जीर्णोद्धार के प्रस्ताव हेतु राशि स्वीकृति के लिए भोपाल में करीब् 3-4 साल से फाईलें अटकी पड़ी  है। महज 7-8 करोड़ रुपए में इन मंदिरों को बेहतर स्वरूप दिया जा सकता है। 

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