भोपाल~पत्रकारों की सुरक्षा के प्रति उदासीन केंद्र सहित राज्य सरकारें -सैयद खालिद केस~~
बाकानेर भोपाल( सैयद रिजवान अली)
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद खालिद केस ने बताया की केंद्र सरकार सहित देश की विभिन्न प्रादेशिक सरकारें देश में पत्रकारों पर हो रहे हमलों को लेकर चिंतित नज़र नही आ रही ।यही कारण है कि वर्षो से पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को नज़र अंदाज़ किया जा रहा है। तथा अब तक किसी भी प्रादेशिक सरकार द्वारा पत्रकार सुरक्षा कानून लागू नही चिंताजनक है।
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा लगातार पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग का अभियान चलाया जा रहा है।अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर संगठन द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे पत्र का उत्तर देते हुए सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा जो उत्तर प्रस्तुत किया वह हास्यास्पद है।
सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा दिए गए उत्तर में यह कहा गया कि गृह मंत्रालय द्वारा दिनाँक 20/10/2017 को समस्त प्रादेशिक सरकारों सहित केंद्र शासित सरकारोँ को पत्रकारो की सुरक्षा के लिए गाइडलाइन घोषित की थी, जिसका सम्पूर्ण भारत ने पालन सुनिश्चित किया गया था,मगर दुर्भाग्यवश जिस पर आज दिनाँक तक किसी भी सरकार ने पूर्ण रूप से अमल नही किया।
क्या है गृह मंत्रालय द्वारा दिनाँक 20/10/2017 को समस्त प्रादेशिक सरकारों सहित केंद्र शासित सरकारोँ को पत्रकारो की सुरक्षा के लिए गाइडलाइन:-
केंद्र सरकार द्वारा लिखा गया था कि देश में पत्रकारों पर हो रहे हमलों को लेकर गृह मंत्रालय चिंतित है। इसे लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा है। मंत्रालय ने मीडियाकर्मियों पर हमले की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए यह निर्देश दिया है। राज्यों को जारी निर्देश में गृह मंत्रालय ने पत्रकारों पर हुए हमले की जांच में तत्परता बरतने के लिए भी कहा है।
मंत्रालय ने कहा है कि अपराधियों को समय पर कठघरे तक पहुंचाया जाना सुनिश्चित करना होगा। राज्यों को दिए निर्देश में गृह मंत्रालय ने कहा है कि "लोकतंत्र का चौथा स्तंभ महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों को संविधान में मुहैया कराए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हासिल है।
नागरिक बिना किसी भय के स्वतंत्र रूप से अपना विचार रख सकते हैं। पत्रकारों को सुरक्षा मुहैया कराना राज्यों का कर्तव्य है। क्योंकि पत्रकार यह सुनिश्चित करते हैं कि जनता की आवाज हुक्मरानों तक पहुंचे। वहीं देश के सामने सच्चाई लाने के लिए भी वो खतरे मोल लेते हैं।
गृह मंत्रालय द्वारा दिनाँक 20/10/2017 को समस्त प्रादेशिक सरकारों सहित केंद्र शासित सरकारोँ को पत्रकारो की सुरक्षा के लिए गाइडलाइन का यदि समस्त प्रादेशिक सरकारेँ अक्षरत: पालन कर लेती तो सम्भवतः पत्रकार सुरक्षा कानून की ज़रूरत ही नही पड़ती।परंतु सरकारों ने गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस को नज़र अंदाज़ कर दिया और फलस्वरूप देश भर में पत्रकारों के खिलाफ मुक़दमेबाज़ी, झूठी एफआईआर ओर हत्या हत्या के प्रयास जानमाल के नुकसान की घटनाएं बदस्तूर चलती रही। यदि गौर किया जाए तो अक्टूबर 2017 से अब तक सम्पूर्ण देश मे लगभग 25 पत्रकारों ने अपनी जाने गवाईं हैं।
महाराष्ट्र सहित उत्तरप्रदेश में पत्रकार सुरक्षा हेतु कानून की अवधारणा की गई।परन्तु सरकार द्वारा बनाये गए पत्रकार कानून को राष्ट्रपति ने यह कहकर नकार दिया कि एक ही अपराध के लिए दो कानूनों की आवश्यकता नही है।नतीजतन महाराष्ट्र सरकार का कानून अमल में आने से पूर्व ही दम तोड़ गया। पत्रकारों की कब्रगाह कहलाने वाले राज्य उत्तरप्रदेश में वैसे की कानून नाम की कोई चीज़ नही ऐसे में उस राज्य में पत्रकारों की सुरक्षा की उम्मीद बेमानी है। यही कारण है कि उत्तरप्रदेश में सबसे ज़्यादा पत्रकारों पर हमले या हत्या या हत्या के प्रयास की घटनाओं सहित झूठी एफआईआर होने के मामले आम बात है।
छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद जिस तरह भूपेश बघेल सरकार ने पत्रकार सुरक्षा कानून के प्रति गहरी रुचि दिखाई थी उससे उम्मीद जताई जा रही थी कि देश का पहला राज्य छत्तीसगढ़ होगा जिसने पत्रकार सुरक्षा कानून लागु किया ।परन्तु सरकार बने 2 वर्ष से अधिक होने के बावजूद पत्रकार सुरक्षा कानून लागू नही होना उनकी मानसिकता को उजागर कर गया।
मध्यप्रदेश में 2003 से भाजपा सत्ता में है 15 माह की कमलनाथ सरकार को अलग कर दिया जाए तो लगभग 17 वर्षो में मध्यप्रदेश में पुरज़ोर मांग के बावजूद पत्रकार सुरक्षा कानून नही बना। कमलनाथ सरकार ने 2018 में सत्ता में आने से पूर्व ओर आने के बाद पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की घोषणा ज़रूर की परन्तु 15 माह के कार्यकाल में वह घोषणा अमलीजामा नही पहन पाई।ऐसा नही की मध्यप्रदेश पत्रकार सुरक्षा के प्रति सजग रहा हो। यहाँ भी केवल परिपत्र बने अमल नही हुआ। कॉंग्रेस की अर्जुन सिंह सरकार में 1986 में पहली बार गृह मंत्रालय से जारी परिपत्र में यह उल्लेखित किया गया था कि अधिमान्य या गैर अधिमान्य पत्रकारों के विरुद्ध अपराध दर्ज होने पर उनकी गिरफ्तारी से पूर्व उप पुलिस महानिरीक्षक स्तर का अधिकारी जांच करेगा ,समय समय पर अलग अलग परिपत्र अस्तित्व में आये परन्तु पुलिस ने अमल एक पर भी नही किया । फलस्वरूप 1986 से आज तक हज़ारो पत्रकारो को पुलिस की तानाशाही का दंश झेलना पड़ा।
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स पत्रकार सुरक्षा एवं कल्याण के लिए संघर्षरत अखिल भारतीय पंजीकृत संगठन है जो सम्पूर्ण भारत मे पत्रकार सुरक्षा कानून लागू कराने के लिए अभियान चलाए है।
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