झाबुआ~हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी जिम्मेदारों ने आदेश को ताक में रखा-सांठगांठ के चलते हर बार की तरह औपचारिकता बन कर रह गया आदेश~~

निजी स्कूलों की किताबें और ड्रेस सिर्फ कुछ चुनिंदा दुकानों पर,एक्टिविटी करवाने के नाम पर निजी प्रकाशकों की किताबें कर रखी हैं लागू-ठगे जा रहे अभिभावक~~

क्यों निकालते है ऐसे आदेश कलेक्टर,जिसका परिपालन ही नहीं करवा पाते है तो .....?-अभिभावक~~

झाबुआ। ब्यूरो चीफ -संजय जैन~~




जिले भर में नया शिक्षा सत्र शुरू हो गया है। इसके साथ ही सीबीएसई वाले प्राइवेट स्कूल संचालकों ने किताबों व यूनिफॉर्म के कमीशन का खेल भी शुरू कर दिया है। निजी स्कूल विद्यार्थियों को एनसीईआरटी की किताबों की जगह दिल्ली के प्रकाशकों की किताबें खरीदने को कहा जाता हैं,वहीं प्रकाशक अपनी किताबें केवल अनुबंधित स्टेशनरी को ही उपलब्ध कराते हैं। इस तरह प्रकाशक,निजी स्कूल और दुकानदार की सांठगांठ से हर साल हजारों अभिभावक ठगी का शिकार हो रहे हैं। शासन के निर्देशों के बावजूद भी निजी स्कूलों की किताबें केवल निश्चित दुकानों पर ही उपलब्ध हैं। जबकि केंद्रीय विद्यालय के विद्यार्थियों को शहर की किसी भी स्टेशन पर किताबें मिल जाती है।

अधिकारियों का डर ही नहीं ...................



सीबीएसई मान्यता वाले निजी स्कूल संचालकों ने तो किताबों के नाम पर तय सिलेबस की कीमत से 20 गुना ज्यादा तक वसूलना शुरू कर दिया। कक्षा 1 की जो किताबें 260 में सहज उपलब्ध हो रही है। उसी सिलेबस को निजी प्रकाशक से छपवाकर स्कूल संचालक 2 से 4 हजार रुपए में चुनिंदा दुकानों के माध्यम से बिकवाने में लगे है। इधर, भ्रष्ट तंत्र को पालकों से हो रही लूट खसोट से कोई सरोकार नहीं है। न तो किसी प्रशासनिक अधिकारी ने इस तरफ ध्यान दिया और न ही शिक्षा अधिकारियों ने। सीबीएसई स्कूल संचालकों को तो अधिकारियों का डर ही नहीं है। वे सीधे केंद्र की मान्यता का हवाला देकर यहां के अधिकारियों को चलता कर देते है। जबकि इन स्कूलों के लिए भी केंद्र सरकार ने गाइडलाइन तय की है। बाकायदा कक्षावार एनसीईआरटी की पुस्तकों का सिलेबस तैयार करते हुए उसी सिलेबस पर परीक्षा कराने का फरमान है। बावजूद स्कूल संचालक अपने अपने स्तर केंद्र सरकार द्वारा तय सिलेबस पर आधारित पुस्तकें निजी प्रकाशकों से तैयार कराते हुए किताबों के नाम पर मोटी राशि वसूलने में लगे है। इस बार तो स्कूल संचालकों ने सारे हदें ही पार कर दी है।

ठगे जा रहे अभिभावक......



नवीन शिक्षण सत्र में निजी स्कूल संचालक अभिभावकों से नई कक्षा की किताबें मंगवाने लगे हैं। निजी स्कूलों की किताबें किसी एक विशेष दुकान पर मिलने की वजह से अभिभावक मोलभाव नहीं कर पाते हैं बल्कि उन्हें मुंह मांगे दाम चुकाने को मजबूर होना पड़ रहा है। अभिभावक ठगे जा रहे हैं। कलेक्टर ने आदेश जारी किया था लेकिन आदेश का पालन अब तक किसी भी निजी स्कूल ने नहीं किया है।

परेशानी यह........गिनी-चुनी दुकानों पर ही उपलब्ध है .................

कोर्स और यूनिफार्म स्कूल संचालकों ने अपनी सुविधा के अनुसार बुक स्टॉल पर सेट करके रखे हैं, उन्हीं की दुकानों पर उनके स्कूलों का कोर्स उपलब्ध है। यूनिफार्म के लिए भी दुकानें निर्धारित हैं, जो अपनी मनमर्जी के हिसाब से यूनिफार्म बेच रहे हैं। बताया तो यहां तक जाता है कि कपड़ा व्यापारी स्कूल संचालकों को शिक्षण सत्र प्रारंभ होने से पहले ही उन्हें उनका कमीशन पहुंचा देते हैं। इस तरह कोर्स और यूनिफार्म जिले भर में गिनी-चुनी दुकानों पर ही बेची जा रही है, जिसका नुकसान पालकों को उठाना पड़ रहा है। इस तरह संबंधित दुकानदार का भी एक तरह से बाजार पर एकाधिकार हो जाता है।

आने लगा पालकों को किताबें खरीदने में पसीना .........



एनसीईआरटी की किताबें तो सस्ती हैं, परंतु निजी प्रकाशकों की किताबों की कीमत इतनी ज्यादा है कि पालकों को उन्हें खरीदने में ही पसीना आने लगा है। एक बच्चे का कोर्स ही 2400 से 3200 रुपए तक में आ रहा है, जबकि केंद्रीय विद्यालय का कोर्स 500 से 800 रुपए के बीच मिल रहा है। इतना ही नहीं,प्राइवेट स्कूलों में री-एडमिशन के नाम पर भी फीस की वसूली की जा रही है। इसका पालकों द्वारा विरोध भी किया जा रहा है,लेकिन स्कूल संचालक कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं। ऐसी स्थिति में पालकों को 7 हजार से लेकर 10 हजार रुपए तक की राशि री-एडमिशन के नाम पर स्कूलों में जमा करवाना पड़ रही है,जबकि नए प्रवेश की राशि तो 15 से 20 हजार रुपए तक ली जा रही है।

नर्सरी की किताबों की कीमत 1600 से 2000 तक...................

निजी प्रकाशकों के माध्यम से तैयार कराई जा रही किताबों की कीमत इस बार 25-30 फ ीसदी बढ़ा दी गई है। स्थिति यह हैं कि सीबीएसई स्कूलों में नर्सरी यानी प्ले के लिए ही 1600 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक की किताबें बैच रहे है। एलकेजी की 1700 से 2100 और यूकेजी कक्षा की पुस्तकें 1500 से 2200 रुपए में चुनिंदा दुकानों के माध्यम से बेची जा रही है।

एक्स्ट्रा पुस्तकें भी बेच रहे सिलेबस के अलावा ..............

स्कूल संचालकों ने अपने स्तर से 3-4 किताबें अलग से छपवाई और उक्त पुस्तकों को भी सिलेबस के साथ जोड़ दिया। जबकि इन एक्सट्रा किताबों में से न तो परीक्षा में कुछ पूछा जाएगा और न ही बच्चों को कोई अन्य फायदा होना है। यानी सिर्फ अपनी कमाई के लिए स्कूल संचालकों ने किताबों की लंबी-चौड़ी सूची तैयार कर ली।

एक किताब मांगी,तो बोले पूरा सेट ही लेना पड़ेगा.....

झाबुआ मुख्य बाजार स्थित स्टेशनरी की दुकान पर जब एक अभिभावक ने पहली कक्षा की ईवीएस विषय की एक किताब मांगी तो दुकानदार ने एक किताब देने से मना कर दिया। बोला आपको पूरा सेट ही लेना पड़ेगा। इतना ही नहीं किताबों के साथ कॉपी,रोल,स्केल,पेन-पेंसिल और स्टेशनरी की अन्य सामग्री का पूरा सेट बनाकर दिया जा रहा है। इतना ही नहीं जब दुकानदार से पक्का बिल मांगा तो दुकानदार बोला किताबों में पहले से टैक्स कटा है और मैंने किताबों की लिस्ट बनाकर दी है। इसका पक्का बिल नहीं दिया जाता।

किताबों के साथ स्कूल ड्रेस का भी यही हाल........

निजी स्कूलों में चलने वाली किताबों के साथ उनकी ड्रेस भी बाजार में चुनिंदा दुकानों पर ही उपलब्ध है। परिणामस्वरूप किताबों की भांति अभिभावकों को स्कूल ड्रेस के लिए भी मुंह मांगे पैसे चुकाने होते हैं। खास बात तो यह है कि शहर में स्टेशनरी की करीब आधा सैकड़ा से अधिक दुकानें हैं। वहीं रेडीमेड गारमेंट्स की संख्या इनसे दोगुनी है। लेकिन शहर में 90 फीसदी स्कूल 2 से 4 स्टेशनरी और रेडीमेड दुकानों पर सेट हैं।
   
००००० बॉक्स खबर ००००

क्यों निकालते है ऐसे आदेश कलेक्टर,जिसका परिपालन ही नहीं करवा पाते है तो .....

अभिभावकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अधिकारी कहते है आप लिखित में शिकायत देवे,हम कार्रवाई करेंगे। जबकि वे यह बात अच्छे तरीके से जानते है कि ऐसा कोई भी अभिभावक करने की हिम्मत नहीं जुटा पायेगा,क्योंकि उनका बच्चा उसी स्कूल में पढ़ता है । इस बार तो हम बहुत तनाव मुक्त थे,कलेक्टर के आदेश के बारे में जानकर। लेकिन यह आदेश दुकानदारो,स्कूलों और संबधित अधिकारियो की साठ गांठ के चलते के सिर्फ एक ओपचारिकता बन कर रह गया। शायद लगता है इस आदेश को पढ़कर कचरे के डिब्बे में डाल दिया गया होगा। क्यों निकालते है ऐसे आदेश कलेक्टर,जिसका परिपालन ही नहीं करवा पाते है तो .....? कलेक्टर अपने वातानुकूलित कक्ष से बाहर आकर,नगर में एकाध बार तो भ्रमण कर..... तो ही उनको वास्तविक स्थिति का अंदाजा आ पायेगा..... साठ गांठ वाली दुकानें भी अभिभावकों को रोज दुकानों पर चक्कर लगवा रहे है । उन्हें दुत्कारते हुए आज आना,कल आना और अब 30 तारीख बाद आना यह कह रहे है। अभी ड्रेस नहीं आयी है,वैसे भी स्कूल वालो से हमारी बात हो गयी है ,30 जुलाई तक बिना ड्रेस से बच्चा स्कूल आ सकता है,ऐसा उन्होंने बताया भी है।
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प्रशासन सख्त हो तो ही खत्म हो सकेगी निजी स्कूलों की मनमानी.........

यह समस्या हर साल की है। नवीन शिक्षण सत्र प्रारंभ होते ही निजी स्कूल संचालक अभिभावकों को विशेष दुकान से किताबें खरीदने के लिए मजबूर करते हैं, जिससे अभिभावक मोलभाव नहीं कर पाता है। अच्छा कमीशन पाने के लिए निजी स्कूल निजी प्रकाशकों के मंहगे पाठ्यक्रम अभिभावकों से खरीदवाते हैं। प्रशासन को चाहिए कि इस मोनोपोली को खत्म करने के लिए सख्ती से कदम उठाए जाएं। शासन के निर्देश के बाद तो इसका सख्ती से पालन कराना जिला शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी है।
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जितेंद्र सिंह राठौर- रहवासी- झाबुआ

प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत...................

-वास्तविक कीमत से 20 गुना ज्यादा महंगी किताबें बेचने वालों पर जिम्मेदारों का ध्यान ही नहीं है।
- सरकार के निर्देश के बावजूद सिलेबस में थोड़ा बदलाव कर एक्स्ट्रा पुस्तकें जोड़ मोटी राशि कमा रहे है।
-स्कूल संचालक बच्चों पर किताबें खरीदने का बना रहे दबाव,नियमों पर अमल कराने प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है।

हर बार की तरह कलेक्टर ने फ़ोन ही रिसीव नहीं किया............................

हर बार की तरह उनके वर्जन लेनु हेतु कलेक्टर को मेसेज और कॉल करने के बाद भी कलेक्टर ने फ़ोन ही रिसीव नहीं किया,वे ऐसा क्यों करती है यह तो वे ही जाने...? हम पत्रकार तो प्रशासन के आयने है,कार्यवाही करना न करना उनके विवेक पर ही निर्भर है। हम तो कार्यवाही न होने तक लगातार खबरें प्रकाशित करते रहेंगे,जिससे कभी तो कार्यवाही होगी,उसका हमें पूरा विश्वास रहता है।
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