झाबुआ~मजबूत गुप्तचर संगठन, सैन्य कौशल और सामाजिक विश्वास ने ही शिवाजी को छत्रपति बनाया....नितिन गोखले~~
झाबुआ।ब्यूरो चीफ-संजय जैन~~
शिवाजी महाराज का युद्ध-सैन्य कौशल बाकी के आज तक के सभी शासकों से बेहद अलग था। सैनिकों, समाज के विभिन्न वर्गों का विश्वास और मजबूत गुप्तचर संगठन जैसे कारण रहे कि मात्र 15 हजार सैनिकों के बल पर उन्होंने लाखो सैनिकों वाले मुगल शासक को परास्त किया था।किसी भी शासक की सफलता उसके गुप्तचर संगठन की दक्षता पर ही निर्भर करती है।इस चुनाव में इतनी सीटें हार गए, पता ही नहीं चला। भाजपा में यदि यह इसका चिंतन है तो उन्हें इसे सरकार के खुफिया विभाग की असफलता है या उसकी रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करना भी हो सकता है। संचार विशेषज्ञ, रणनीतिक मामलों के विश्लेषक नितिन अनंत गोखले (दिल्ली) ने छत्रपति शिवाजी महाराज के 351वें राज्याभिषेक दिवस पर “छत्रपति शिवाजी तथा समकालीन शासकों की गुप्तचर संघटना” विषय पर बोलते हुए ये विचार व्यक्त किए।
मजबूत गुप्तचर प्रणाली ....
शिवाजी की सेना छोटी थी लेकिन मुगलों की बड़ी सेनाओं को उन्होंने अपनी गुरिल्ला युद्धनीति से पराजित किया। था।यही कारण है कि भारत सहित विदेशों में भी सेना को ‘गुरिल्ला वॉर आफ छत्रपति शिवाजी’ पाठ्यक्रम समझाया जाता है। विश्व के तीन सुपर पॉवर देशों को हराने वाला वियतनाम जैसा देश कहता है, हमने बहुत सी चीजें शिवाजी के रणकौशल से ही अपनाई है। आदिलशाही, निजाम और औरंगजेब ये तीन मुख्य शत्रु थे उनके। सभी को नाकों चने चबाने के साथ ही शिवाजी ने हिंदवी स्वराज की नींव रखी थी तो उनकी इस मजबूत गुप्तचर प्रणाली ही उनकी सफलता का कारण भी रही थी।
गोखले ने पॉवर पॉइंट के माध्यम से बताया कि एक कमजोर शक्ति के रूप में उन्होंने गुरिल्ला नीति को युद्ध में शामिल किया।पहले से सचेत रहना ही उनके युद्ध कौशल का सबसे बड़ा हथियार।वे दुश्मन की ताकत और कमजोरी को पहले पहचान लेते थे और उसे मजबूर कर के अपनी पसंद के स्थान पर युद्ध के लिए मजबूर कर देते थे।उनके खुफिया तंत्र का प्रमुख बहिर्जी नाइक बहुरुपिया भी था।उसके मुखबिरों के तीन प्रमुख स्त्रोत थे वफादार सैनिक, विभिन्न घुमंतू व्यापारी और ग्रामीण।इन्हें बर्हिजी से निर्देश मिलते थे। गुप्तचर दुश्मन की जानकारी एकत्रित करते और साम, दाम, दंड, भेद (परामर्श, रिश्वत, बल, विभाजन) का उपयोग करते। दुश्मन के दिमाग में कंफ्यूजन पैदा करने के लिए गलत सूचना, दुष्प्रचार का सहारा लेते थे।युद्ध के दौरान दुश्मन को भ्रमित करने के लिए शिवाजी ने अपने हमशक्ल को एक रास्ते से भेजा और वो खुद दूसरे रास्ते से निकल गए थे।शाइस्ता खान के सेनापति करतलब खान को गलत सूचना देकर उम्बरखिंड के संकरे रास्ते पर उलझा कर उसकी एक लाख की सेना को 15 हजार की सेना ने हरा दिया था। उनके हर लड़ाकू दल में कुछ गुप्तचर वेश बदल कर पहले ही पहुंच कर जानकारी जुटा लेते थे। वे प्रजा को अपने प्लान में शामिल हमेशा रखते थे, इससे उनकी युद्ध शक्ति स्वत: ही बढ़ जाती थी।
सोशल इंजीनियरिंग को साथ लेकर सारे अभियानों को अंजाम देते थे....
शिवाजी के युद्ध कौशल पर ग्रांज टफ और जेएन सरकार ने लिखा है की वे खुफिया जानकारी को पुख्ता करने के बाद, समाज के सभी वर्गों (सोशल इंजीनियरिंग) को साथ लेकर सारे अभियानों को अंजाम देते थे।
इसके ठीक विपरीत मुगल/आदिलशाही की गुप्तचर प्रणाली की बात करें तो इन शासकों ने संचार प्रणाली पर अधिक जोर दिया था।पैदल धावक और घुड़वार जानकारी का आदान प्रदान करते थे। सूचना ब्यूरो वाली व्यवस्था में अलग अलग को दायित्व थे।डाक चैौकियां, डॉक प्रणाली से मुगलों को जानकारी लग जाती थी कि शासन में क्या चल रहा है।बारिद (जासूस) साप्ताहिक जानकारी भेजते थे। अत्यावश्क जानकारी घुड़सवार, पैदल सैनिक भेजते थे।
हमास ने मानवीय तकनीक से जवाब दिया.....
मुगल शासक आदिलशाह का साम्राज्य आरामदेह था।खुफिया तंत्र की मजबूती की अपेक्षा उसकी राजस्व बढ़ाने और अपने स्वयं के कल्याण में अधिक रुचि थी। उनमें बुद्धिमता का अभाव था।
प्रश्नों के जवाब में नितिन गोखले ने यूक्रेन-इजरायल युद्ध के संबंध में कहा की खुफिया एजेंसी मोसाद की अत्याधुनिक तकनीक पर निर्भरता का जवाब हमास ने मानवीय तकनीक से दिया है।हमास ने हैंडग्रेनेड, ट्रेक्टर के उपयोग से मोसाद के तंत्र को फेल कर दिया।मोसाद में नेशन फर्स्ट वाली भावना की जगह सेलरी फर्स्ट वाली भावना का पनपना भी इस एजेंसी के फेल होने का बड़ा कारण है।
शिवाजी को युगपुरुष कहा जाता है....
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति वीएस कोकजे ने कहा कि शिवाजी के व्यक्तित्व के कई आयाम होने से उन्हें युगपुरुष कहा जाता है।शिवाजी को राजा से पहले सैनिक, सेनापति, रणकौशल, गुरिल्ला युद्ध के जनक, सामाजिक एकजुटता के संगठक आदि रूप में जाना जाता है। महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन शिवाजी के सिद्धांतों के विपरीत है, लेकिन दोनों संगठन नाम उन्हीं का ले रहे हैं।
जाल सभागृह में सौ शोभा कुटुंबले स्मृति व्याख्यान के प्रारंभ में स्वागत भाषण-कार्यक्रम संयोजक श्रीनिवास कुटुंबले ने दिया।अतिथि स्वागत आंकाक्षा कुटुंबले, अरविंद केतकर, आशुतोष कुटुंबले,दिलीप कवठेकर, दर्पण भालेराव और डॉ. मिलिंद दांडेकर ने किया। संचालन लेखिका ज्योति जैन ने किया।
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उरी फिल्म में मेरी कहानी चुराई, मुआवजा देना पड़ा, फोन, मेल, वॉटसएप कुछ भी सुरक्षित नहीं
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उरी की मूल कहानी मेरी लिखी किताब से चुराई गई थी.....
एक प्रश्न के जवाब में नितिन अनंत गोखले ने कहा सर्जिकल स्ट्राइक आधारित फिल्म उरी की मूल कहानी मेरी लिखी किताब से चुराई गई थी। मैंने रानी स्क्रूवाला पर केस किया और उन्होंने मुझे मुआवजा राशि भी दी गयी।
पेगासस के इस्तेमाल से फोन की जानकारी जुटाने को लेकर उनका कहना था आपका फोन सुरक्षित नहीं है।जो ईमेल करते हैं वह और वॉटसएप कुछ भी सुरक्षित नहीं है। गोपनीय बात आमने-सामने तक ही सुरक्षित है।
चार साल पहले आरएन कॉव की बायोग्रॉफी लिख चुके नितिन 45 दिन कारगिल में वॉर रिपोर्टिंग भी कर चुके हैं।महू सहित भारत और विदेशों की सैन्य अकादमी में पढ़ाने भी जाते हैं। दो बार आतंकियों ने इन्हें नार्थ इस्ट में किडनेप भी कर लिया था वहा से वे जैसे-तैसे बच कर आ गए थे। अब वे चीन जाने के नाम से से तौबा कर चुके हैं क्योंकि वे वहा की एजेंसियों के निशाने पर हैं। वे युद्ध संबंधी अपने अनुभवों पर फिल्म निर्माण की तैयारी कर चुके हैं।
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