झाबुआ~सीएम हेल्पलाइन हो चुकी है हेल्पलेस- अधिकारी सीधे रिजेक्ट कर रहे शिकायतें, लेकिन उन्हें बतानी होती है कोई 1 वजह~~
तय किए गए चार आधार जनता की शिकायत के निराकरण को असंभव करार देने के लिए तो नही बनाये गए~~
दूसरी ओर घंटो इंतजार कराने के बाद नही मिलती कलेक्टर~~
झाबुआ। ब्यूरो चीफ-संजय जैन~~
ताकतवर सिस्टम के खिलाफ पहले जनता के हाथ में दो बड़े हथियार थे। पहला आईटीआई कानून,जिसे अब बहुत कमजोर कर दिया गया है। दूसरा सीएम हेल्पलाइन, जिसे कमजोर करने की तैयारी पिछले वर्ष कर दी गयी थी।जिसके चलते अधिकारी किसी भी शिकायत को सीधे रिजेक्ट कर दे रहे है। लेक़िन इसके लिए उन्हें चार में से कोई एक वजह बताना अनिवार्य किया गया था। मसलन सीएम हेल्पलाइन में अगर किसी ने कहीं नाली या सड़क निर्माण की बात हेतु शिकायत की है तो उसे इस आधार पर रिजेक्ट किया जा सकेगा कि इसके लिए बजट नहीं है। जनता के आवेदनों को नामंजूर करने के लिए सबसे व्यापक आधार नीतिगत निर्णय होगा। यह एक ऐसा शब्द है,जिसे कहीं भी फिट किया जा सकता है। इसके अलावा न्यायालयों में लंबित मामला, बताकर भी आवेदन खारिज किए जा सकते हैं।
एक और अहम हथियार,प्रशासनिक सिस्टम को दिया गया .....
लक्ष्य से अधिक आवेदन यानी अगर कोई व्यक्ति पीएम आवास के लिए सीएम हेल्पलाइन पर आवेदन करता हैं तो उसे सिर्फ यह कहकर रिजेक्ट कहा जा सकता है कि इस योजना में लक्ष्य से अधिक आवेदन आ चुके हैं। गौरतलब है कि हर टीएल बैठक में कलेक्टर सीएम हेल्पलाइन के बिंदु पर विस्तृत चर्चा करती है,लेकिन क्रियान्वन कराने में शायद उनकी रुचि ही नही है ऐसा साफ प्रतीत हो रहा है। जबकि सीएम हेल्पलाइन पोर्टल पर 15 अप्रैल 2024 तक दर्ज लंबित सभी शिकायतें पृथक से प्रदर्शित की जानी चाहिए।
चुनावी वर्ष में सरकार एक के बाद एक लोक लुभावन योजनाएं ला रही थी। इनके क्रियान्वयन में पूरा का पूरा अमला लगा दिया जाता था। मसलन लाड़ली बहना योजना के चलते अप्रैल 23 में प्रशासनिक सिस्टम लगभग ठप रहा था। जिसके चलते सभी को इसी काम में लगा दिया गया था । इसके अलावा विकास यात्राओं में भी इसी तरह अधिकारी लगाए गए थे। ऐसे में अधिकारियों के पास सीएम हेल्पलाइन पर आने वाले आवेदनों के निराकरण का समय ही नहीं बचता था। नतीजा यह है कि पेंडेंसी बढ़ती जा रही थी,जिसके हालात आज तक जस के तस बने हुए है,पीड़ित तो सिर्फ गुहार लगाने के बाद से यह समझता है उसकी शिकायत का निराकरण जल्द हो जाएगा,लेकिन उन्हें कप्तान पर कितना भरोसा है यह तो पीड़ित ही जानता है।
घंटो इंतजार कराने के बाद नही मिलती कलेक्टर....
गौरतलब है कि जिले को अब तक ऐसा कलेक्टर नही मिला है जो अपनी मर्ज़ी नुसार ही आमजन,अधिकारी और नेता को मिलने हेतु समय देती है। जबकि उन्हें बाकायदा स्लिप भेजकर सूचित किया जाता है कि वे उनसे मिलना चाहते है। लेकिन बाहर घण्टो बैठे लोग इंतजार में बैठे रह जाते है कि अभी उनका नंबर आएगा और वे उनको अपने आलीशान कार्यालय में बुलाएगी और उनकी समस्या को सुनेगी।लेकिन होता यह है कि वे शायद सिर्फ अपने मतलब के लोगो से मिल लेती है और अंत मे चुपचाप अपने कार्यालय से रवानगी डाल देती है। बाहर बैठे लोग हताश होकर चुपचाप चले जाते है।अभी हाल में ही आप पार्टी के नेता के साथ भी ऐसा बर्ताव किया गया, जिसके बाद उनकी एसडीएम से तीखी नोकझोक भी हुई थी। नेता ने कि कलेक्टर को तनख्वाह जनता द्वारा भरे जा रहे टैक्स के कारण ही मिलती है।वे जनता की नौकर है न की उनकी मालकिन है । कलेक्टर को इतना घमंड किस बात का है यह तो वे ही जाने,लेकिन इतिहास गवाह है की घमण्ड के चलते रावण का क्या अंत हुआ था, यह सभी जानते ही है। इस घटना से साफ स्पष्ट होता है कि वे जब नेताओ का वे ऐसा हश्र करती है तो बेचारे आमजन का क्या हाल होता होगा...? मजेदार बात तो यह है कि उपरोक्त लोग तो ठीक पत्रकारों के प्रति भी उनका यही रवैया है। एक सुर में पत्रकारों का कहना है कि यदि वे ऐसा बर्ताव करती है और उनको वर्जन हेतु सूचित करने के बाद भी वे समय नही देती हैं, तो हम पूरे जोर शोर से उनकी खबरों को प्रकाशित नही करंगे।
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