धार~~लोक संस्कृति पर्व- गंगा महादेव पर गूंजी मांदल की थाप, भगोरिया की शुरुआत ~~

परंपरागत वेशभूषा में शामिल हुए आदिवासी समुदाय के लोग, बांसुरी से छेड़ी तान ~~

धार ( डाॅ. अशोक शास्त्री )। 

फागुन माह की शुरुआत 6 फरवरी से हो गई है। फागुन और फाग के आगमन का उत्साह जिले में शनिवार 18 फरवरी को महाशिवरात्रि से दिखाई देने लगा है। सरदारपुर विकासखंड के सुल्तानपुर क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य स्थापित गंगा महादेव मंदिर में मांदल की थाप और बांसुरी की तान के साथ भगोरिय का आगाज हो गया है। शनिवार को जहां मंदिर में दर्शन करने वाले लोगों की मौजूदगी रही। वहीं सुल्तानपुर में भगोरिया में शामिल होने के लिए आदिवासी समुदाय के लोग परंपरागत वेशभूषा में पहुंचे। इस दौरान करीब 45 गांव के लोग मांदल लेकर पहुंचे। इसमें समाजजनों ने जमकर कुर्राटी भरते हुए मस्ती का रंग जमाया। 
लोक संस्कृति का पर्व है भगोरिया 
गौरतलब है कि पंरपरानुसार मान्यता के आधार पर सरदारपुर विकासखंड के गांव सुल्लतापुर से शिवरात्रि पर्व पर भगोरिया पर्व का आगाज होने के साथ पूरे जिले में भगोरिया की शुरूआत होती है। पूरे साल समाजजनों को इस दिन का इंतजार रहता है। शनिवार दोपहर 2 बजे जब यह पल आया तो हर किसी का उत्साह देखते ही बन रहा था। आदिवासी वेशभूषा में समाजन आए और जमकर मांदल की थाप पर थिरके। धुलेंडी पर्व तक जिले के अलग-अलग स्थानों पर भगोरिया हाट लगेंगे। इसमें अलग-अलग समूह से लोग मांदल-ढोल लेकर पहुंचेंगे। नृत्य कर पर्व की खुशियां मनाते है।  
हजारों लोगों ने किए देव-दर्शन 
महाशिवरात्र पर्व पर गंगा महादेव मंदिर में मेले जैसा दृश्य दिखाई दिया। मांदलों की थाप सुनाई दे रही थी। वहीं हजारों लोगों ने मंदिर पहुंचकर भगवान महादेव के दर्शन किए। हालत यह रही कि लोगों को 1-1 किलोमीटर दूर वाहन छोड़कर पैदल दर्शन के लिए पहुंचना पड़ा। पुलिस जवान दिनभर व्यवस्थाओं को संभालते रहे। प्रात: 5 बजे से दर्शन के लिए लोग पहुंचने लगे थे।  
भारी भरकम होती है मांदल 
सुल्तानपुर में दोपहर से ही भगोरिया का उत्साह दिखने लगा था। समुदाय के लोग पहाड़ी पर एकत्रित होने लगे थे। 2 बजे बाद मांदल के एक बडेÞ समूह ने सूर छेड़कर वातावरण में उल्लास का रंग जमा दिया। इसके बाद सब नृत्य के रंग में रंग गए। करीब 45 गांवों से सैकड़ों की संख्या में समाजजन मांदल-ढोल लेकर पहुंचे थे। शाम तक यह उत्साह बराकरार रहा। भगोरिया में मालगढ़, चांदुड़ी, वीरपाड़ा सहित आसपास के गांवों से लोग पहुंचे थे। उल्लास की स्थिति का अंदाजा यह लगाईये कि परंपरागत वाद्ययंत्र मांदल काफी वजनी होती है। कुछ मांदलों का वजन तो 40 से 50 किलो तक भी होता है, किंतु उसकी रस्सी गले में डालकर इसे बजाने के दौरान वादक पर उल्लास इस तरह रहता है कि उसे इस वजन का पता ही नहीं चलता।  

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