भोपाल~नर्मदा आंदोलन कारीयों के नामपर कांग्रेस और भाजपा की वोटबैंक पर क्यों डाका डाल रहे ~~
गुजरात का सही विकास किसने रोका है~~
नफरत छोड़ो। भारत जोडो || यात्रा के समर्थन में नर्मदा घाटी के सैंकडो विस्थापित आदिवासी राहुल गांधीजी से मिले, उनके साथ मेधा पाटकर सहित चले कुछ दिन तो प्रधानमंत्रीजी और भाजपा के नेता बौखला गये हैं। उन्हें गुजरात की जनता का वोट कभी आम आदमी पार्टी, तो कभी कांग्रेस की तरफ मुडनेका डर सताने से झूठ बोलना और नर्मदा बचाओ आंदोलन को लक्ष्य बनाना पड़ रहा है।
हमें गुजरात विरोधी कहने वाले जब कि नर्मदा विरोधी और गुजरात के जरूरतमंद किसान-मजदूर, आदिवासी विरोधी साबित हो चुके हैं, तब जरूरी है सभी आकडाकीय जानकारी लेकर खुली बहस होना| सरदार सरोवर बांध के लाभों का जाल फैलाकर भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात की जनता से बड़ी मात्रा में वोट हासिल किये थे। उन्हें अब डर है कि जनता, कच्छ-सौराष्ट्र की हो या सही पुनर्वास से वंचित विस्थापित और आज भी पानी के लिए तरस रहे ग्रामवासी, नर्मदा में समंदर घुस आने से प्रभावित बांधके नीचेवास के मछुआरे, किसान भी भाजपा सरकार से नाराज है| इसीलिए 'हमने सरदार सरोवर ही नही, गुजरात का पूरा विकास रोका' यह आरोप लगाने वाले खुद की पोलखोल कर रहे हैं और हमें बहुत ही शक्तिमान घोषित कर रहे हैं।
जिन्होंने सच्चाई जानी है, सर्वोच्च अदालत के 2000 से 2019 तक के फैसले पढे हैं, विश्व बैंक ने इस बांध का फंड क्यों रोका, यह आंतरराष्ट्रीय 'मोर्स रिपोर्ट’ से जाना है और आज की ताजा स्थिति समझी, देखी है वेही समझ सकेंगे कि स्वयं प्रधानमंत्री और उनके नेता कितना झूठ फैलाते हैं। सरदार सरोवर के न सिंचाई के, नहीं बिजली के लाभ सही पाये हैं। मध्यप्रदेश बिजली के बदले 900 करोड क. और महाराष्ट्र भी करोड़ो रुपये मांग रहा है। गुजरात वह भी मंजूर नही कर रहा। महाराष्ट्र और म.प्रदेश की हजारों हेक्टर्स वनभूमी और शासकीय भूमी डुबमें आयी, उसकी कीमत गुजरात ने नहीं चुकायी है। पुनर्वास का महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश का खर्च भी गुजरात ने देना है, यह नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले याने कानून अनुसार बंधन- कारक होते हुए भी गुजरात अब उसे नकार रहा है इसलिए इसपर, भी मध्यस्थता चल रही है। म. प्रदेश की मांग है, 8000 करोड़ की!
पर्यावरण पर असर भी गंभीर है। नर्मदा के किनारे अवैध रेतखनन से ही नही, बड़े बांधोंसे भी वन क्षेत्र डूबा कर नर्मदा भुगत रही है सूखा और बाढ़ का चक्र। सूखने से कम पानी में शहर की गंदगी और उद्योगों से मध्यप्रदेश में उपनदियों में छोड़ा जा रहा पानी, सबसे प्रदूषण और ही बढता रहा है। आज के रोज टेस्ट रिपोर्ट बता रहे हैं कि नर्मदाका पानी पीने लायक नहीं है। बांध के नीचेवास मे समुंदर का पानी, बांध के ही कारण घुसने से (sea ingress) खारा हुआ है तो 6000 मछुआरों की आजीविका पर गंभीर असर, हो रहा है| नर्मदा की नहरों की टूटफूट जगह जगह भुगत रहे हैं किसान, सौराष्ट्रमें छोटी नहरों से नही बड़ी नहरों में डीजल पंप से महंगे दर पर पानी उठाना पड़ता है जिसके खर्च का भार प्रति माह 2000 तक किसान भुगतता है! जिसे चुनाव के बाद नोटीस देकर रोका जाता है!
कच्छ के किसान जानते हैं कि पहले पानी मोडा अहमदाबाद, गांधीनगर, बडोदा शहरों की ओर, जिन्हें पीने का पानी, (प्लान बदलकर), छोटे कस्बों, गावों के बदले दिया गया| ‘साबरमती रिवर फ्रंट' में मनोरंजन के लिए छोड़ा गया| और कच्छ में जो पहुंचा वह भी अदानी के बंदरगाहों। (पोर्टस) और अन्य कंपनीयों को दिया, नहीं किसानों को! खेती तक पहुंचाने के लिए जरूरी छोटी नहरे कच्छ में नहीं बनी तो पाइपलाइनसे इंडस्ट्री और कुछ शहर ही लाभार्थी बनें! कच्छ को पानी देने से आंदोलन ने कभी नही रोका| पूर्व सिंचाई मंत्री रुपाला जी के कच्छ को प्राथमिकता के प्रस्ताव का हमने समर्थन किया!
कुल मिलकर गुजरात में और राजस्थान में 18 लाख हेक्टर्स सिंचाईका दावा भी गलत साबित हुआ, यह बात भूतपूर्व भाजपा के मुख्यमंत्री सुरेश मेहताजीने घोषित करते हुए कहा और लिखा कि “6 करोड गुजरातीयोंको स. सरोवर से फंसाया गया है।" आज झूठी प्रचारी मीडिया में कहा गया है कि 24 लाख हेक्टर्स सिंचाई का लाभ गुजरात को मिला है, जो तदन झूठ है!
कोका कोला सहित कंपनियों को पानी में प्राथमिकता से आम जनता का विकास और विश्वास उड़ गया!
गुजरात की जनता ही नहीं, भाजपा के पूर्व मंत्री और आज के नेता भी जानते हैं कि 9 दशलक्ष एकड़ फिट, गुजरात के हिस्से का पानी का बंटवारा, कंपनियों, उद्योगों के पक्ष में रहा | उन्हें सस्ते दाम में पानी देकर किसानों को कम पानी, अनियमित सप्लाय, छोटी नहरों को न बनाते वंचित रखा गया| कोका कोला जैसे फैक्ट्री को प्राथमिकता दी गई| इसी से पूरे गुजरात को ‘भागीरथ’ के रूप में सिंचित करने का दावा, सभी को पर्याप्त पीने का पानी पहुंचाने का दावा भी पूरा नहीं हुआ है| गुजराती मीडिया ने इस पर आक्रोशित जन जन बताते हैं| अन्य योजनाएं लानी पड़ी तो “सौनी” “SAUNI” जैसी योजना भी सफल नहीं हुई| “सुजलाम सुफलाम” के बदले कई गांव, हजारों एकड़ खेती की बर्बादी भुगतने वालों की हकीकत उपलब्ध है! सरदार सरोवर से प्राप्त लाभों को न नकारते हुए भी, विकास आज भी नहीं हुआ पूरा, तो इसके जिम्मेदार कौन? इसका जवाब चुनावी माहौल में कोई नेता नहीं देगा, यह निश्चित!
विस्थापितों के हक की लड़ाई में क्या है बुराई?
विस्थापितों को तो मोदीजी, गुजरात और केंद्र सरकारने याद नहीं किया। आंदोलन 37 साल चला तोही कानूनी और अहिंसक सत्याग्रही बनकर चलायी मैदानी लड़त से ही करीबन 50000 परिवारोंका पुनर्वास हुआ। आज भी बाकी है महाराष्ट्र में सैकड़ो तो म.प्र. में कुछ परिवारों को आधा अधिक लाभ मिलना, तो संघर्ष और संवाद शासनकर्ताओं से जारी है! गुजरात के विस्थापितों, का पिछले डेढ महिनों से, (बांध स्थलपर नहीं जाने दिया तो)सिरा नामक गाव में ही जारी है, क्रमिक अनशन! आंदोलन ने ही मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में सभी भूमीहीनों को भी पुनर्वास के लाभ मंजूर करवाये। अमल पूरा नही हुआ! सत्याग्रह जारी है और रहेगा|
मोदी सरकारने, सत्ता पर आते ही 32000 परिवार डूबक्षेत्र में बसे होते हुए 2014 में बांध पूरा करने का अवैध निर्णय लिया तो लड़कर ही रोकना पडा, जलाशय भरकर उन्हें डूबोना| तो भी कुछ हजारों पर 1993 – 94,2000 , 2013 , 2019 में अन्याय हुआ। जब नर्मदा ट्रिब्यूनल और सर्वोच्च अदालत के फैसलों के अनुसार भी पुनर्वास का कार्य, किसी भी परिवार की संपत्ति (खेत, मकान ई.) डूबसे प्रभावित होने के 6 महीना पहले पूरा होना था, जिसका उल्लंघन हुआ| इन्ही विस्थापितों को न्याय दिलाने बांध को सर्वोच्च अदालत ने, आंदोलन की याचिका में, 1995 से 1999 तक रोका| विश्व बैंक ने भी समझा 1993 में कि बांध के सामाजिक, पर्यावरणीय और (Hydrological) लाभों के आधार- पानी की उपलब्धता संबंधी अध्ययन और नियोजन ही अधूरा है... उन्होंने सभी राज्य और केंद्र शासन को 6 महीने की समय मर्यादा डालकर, आखिर फंडिंग रोकने का निर्णय लिया| 2000 के सर्वोच्च अदालत के फैसले में न्या. भरुचा ने 6 साल तक सुनवाई के बाद अपने dissent judgment में कहा की सरदार सरोवर का नियोजन ही हुआ नहीं तो बांध आगे नहीं बढ़ सकता है!
आज भी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के उर्वरित पुनर्वास कार्य के लिए कानून अनुसार पूरा खर्च उठाने की जिम्मेदारी गुजरात शासन नहीं उठाने से विवाद जारी है|
महाराष्ट्र -गुजरात के बीच अवैध अनुबंध से राज्य का अहित!
इस परिप्रेक्ष्य में महाराष्ट्र शासन ने 2015 में एक अवैध अनुबंध (mou) के द्वारा, अपने हिस्से का, महाराष्ट्र का ही उप नदियों से बहता पानी, STMC तक गुजरात को दिया है उसके बदले उकई बांध से पानी लेने का आश्वासन बेभरोसे का है! ट्रिब्यूनल का फैसला, जो कानून है, उसमें संशोधन (amendment) अधिकारियों की हस्ताक्षर से किया जाना गैरकानूनी है और महाराष्ट्र के आदिवासियों का त्याग लेकर राज्य के अहित में किया कार्य है| इसकी वापसी जरूरी है!
“पर्यटन” ही विकास है?
सरदार सरोवर को गुजरात के विकास का प्रतीक बताने वाली शासन अब नर्मदा को मात्र पर्यटन का केंद्र बनाती जा रही है। सरदार पटेल के 3500 करोड रुपए के स्टेच्यु के कारण भी नदी किनारे बसे 6 गांवों को 1961 से अब और अब 72 तक गांव के आदिवासियों को बिना पुनर्वास उजाड़ने की योजना बनी है। चरागाह, शमशान, खेतों -मकानों पर भी आक्रमण से लोग हैरान है, लड़ते रहे हैं|
मध्य प्रदेश की शासन जलाशय में “क्रूज” चलाने की ओंकारेश्वर से केवड़िया तक पर्यटकों को ले जाने की योजना आगे धकेल कर जलाशय के पानी को और दूषित करके पीने के पानी पर, मत्स्य व्यवसाय पर, भी असर लाने की सोच रही है तो हरित न्यायाधिकरण, भोपाल में इसे पर्यावरणविद ने चुनौती दी है!
गुजरात का विकास तो छोड़िए, नर्मदा का भी विनाश, लाखों का विस्थापन और 60,000 करोड रुपए का खर्च होकर भी किसान, मजदूर,आदिवासियों को नगण्य लाभ, महाराष्ट्र मध्य प्रदेश को भी अपेक्षित लाभों से वंचना, नर्मदा घाटी के जंगल, उपजाऊ जमीन के साथ इस आदिम नदी घाटी के सैकड़ों मंदिर, मस्जिद और नर्मदा परिक्रमा का पथ और परंपरा भी उजाड़ने वाली योजना की लाभ-हानि और हकीकत पर सत्यवादी भूमिका लेने के बदले उस पर राजनीति चलाने, जनता को भ्रमित करके हमें कटघरे में खड़े करने वालों का झूठा पन की पोल खोल गुजरात के ही आदिवासी, किसान, मछुआरों ने की है, जिसे माध्यमकर्ताओं ने परखना चाहिए| चुनावी राजनीति में जाहिर विकृति को चुनौती देना जरूरी है! प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय नर्मदा बचाओ आंदोलन वरिष्ठ नेता
सुनीति सु.र. सनोबर मंसूरी, कैलाश यादव, पवन यादव, नूरजी वसावे, मेधा पाटकर, श्री मुकेश प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
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