राजोद ~भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर तेजादशमी का पर्व नगर में आस्था व उत्साह के साथ मनाया गया ~~
नगर व क्षेत्र के सभी तेजाजी मंदिरों की आकर्षक सज्जा की गई व सभी जगह मेला - सा माहौल रहा , जहां सर्पदंश से पीड़ित मन्नतधारियों ने अपनी मानता के अनुसार पूजा अर्चना कर निशान चढ़ाए एवं तांती खुलवाई श्रद्धालुओं ने श्रीफल , खीर , चूरमा आदि का तेजाजी महाराज को भोग लगाया। राजोद , साजोद, निपावली, गोंदीखेड़ा, रुणी , संदला आदि जगहों पर नवमी की रात को रतजगा किया व दशमी को तेजाजी मंदिर पर मेला - सा आयोजन हुआ , जहां पर श्रद्धालुओं ने तेजाजी महाराज की पूजा - अर्चना कर आशीर्वाद लिया । नगर के नाग चौतरा मंदिर पर भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा । मान्यता के अनुसार तेजाजी मंदिरों में वर्षभर से पीड़ित , सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीड़ों के काटे गए लोगों की तांती छोड़ी जाती है । सर्पदंश से पीड़ित मनुष्य , पशु यह धागा सांप के काटने पर , बाबा के नाम से पीड़ित स्थान पर बांध लेते हैं । इससे पीड़ित पर सांप के जहर का असर नहीं होता है और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है । वीर तेजाजी को कथा अनुसार वीर तेजाजी अपने ससुराल में डाकुओं द्वारा चुराई गई गायों को छुड़ाने जाते हैं ।
रास्ते मे आग में जलता हुआ सांप दिखाई देता है जो अपनी इहलीला समाप्त कर मोक्ष को प्राप्त होना चाहता है लेकिन तेजाजी उसे बचा लेते हैं , जिसकी वजह से नाराज सांप तेजाजी को डसना चाहता है लेकिन तेजाजी अपने कार्य को पूर्ण कर वापस सांप के पास आने का वचन दे कर चले जाते हैं व अपना कार्य पूर्ण कर पुनः उस सांप के पास आते हैं व उन्हें डंसने का निवेदन करते हैं । वीर तेजाजी की वचनबद्धता को देखकर नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है कि आज के दिन ( भाद्रपद शुक्ल दशमी ) पृथ्वी पर कोई भी प्राणी , जो सर्पदंश से पीड़ित होगा , उसे तुम्हारे नाम की तांती बांधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा । यही कारण है कि भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और सर्पदेश से पीड़ित व्यक्ति वहां जाकर तांती खोलते हैं ।
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