बड़वानी~धरोहर - पूर्व कुलपति और इतिहासकार डॉ. शिवनारायण यादव ने कहा ~~

भीमा नायक की गढ़ी है बहुमूल्य धरोहर, उसे सहेजना है ज़रूरी ~~




बड़वानी / 1857 की महान क्रान्ति को साम्राज्यवादी दृष्टिकोण से इतिहास लिखने वाले लेखकों ने एक मामूली विद्रोह बताया. दुःख की बात है कि कई भारतीय इतिहासकार भी उसे 1857 का विद्रोह कहते हैं. यह विद्रोह नहीं, स्वतंत्रता का घनघोर संघर्ष था. यह देश का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। इस संग्राम में निमाड़ के योद्धा भीमा नायक ने अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 से 1867 तक दस वर्ष संघर्ष किया था। बड़वानी के निकट सिलावाद मार्ग पर भीमा नायक की गढ़ी स्थित है। इस पर पड़े ब्रिटिश बंदूकों की गोलियों के निशान जबरदस्त संघर्ष के जीवंत प्रमाण हैं। यह गढ़ी हमारी बहुमूल्य ऐतिहासिक धरोहर है। इसे सहेजना और संरक्षित करना आवश्यक है। यह पहाड़ी पर ऊंचाई पर स्थित है, यहाँ तक का पहुँच मार्ग सुरक्षित और सुविधाजनक होना चाहिए। युवा पीढी के साथ-साथ समस्त नागरिकों को इसका अवलोकन करके अपने महान पूर्वज के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना चाहिए।
  ये बातें अवधेश प्रतापसिंह विश्वविद्यालय रीवा के पूर्व कुलपति और इतिहासकार डॉ. शिवनारायण यादव ने प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ़ एक्सीलेंस शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बड़वानी के स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित कार्यशाला में कहीं. प्राचार्य डॉ. वीणा सत्य के मार्गदर्शन में ‘भीमा नायक का व्यक्तित्व और योगदान’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।
बताया विस्तृत इतिहास
 डॉ. यादव ने इस अवसर पर भीमा नायक के इतिहास का विस्तार से वर्णन किया। उनके जन्म, माता-पिता, प्रारम्भिक जीवन, बड़वानी रियासत के साथ कार्य, 1857 के स्वाधीनता संग्राम में भूमिका, तात्या टोपे का बड़वानी आगमन और भीमा नायक से भेंट कालापानी की सजा आदि के बारे में युवा विद्यार्थियों को बताया। 
डॉ. पुष्पलता खरे ने खोजी पुण्यतिथि
 डॉ. यादव ने बताया कि भीमा नायक के देहावसान की तारीख खोजने का श्रेय महाविद्यालय के इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष डॉ. पुष्पलता खरे को हैं उन्होंने ब्रिटिश डाक्यूमेंट्स के हवाले से बताया कि भीमा नायक की मृत्यु कालापानी की सजा भुगतते हुए अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित पोर्ट ब्लेयर में 29 दिसम्बर, 1876 को हुई थी। डॉ. खरे की इस खोज के कारण ही हम प्रतिवर्ष सही तारीख को भीमा नायक की पुण्यतिथि मना पा रहे हैं । कार्यशाला का समन्वय कार्यकर्तागण प्रीति गुलवानिया और वर्षा मुजाल्दे ने किया। संचालन शासकीय महाविद्यालय पाटी के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. अनिल पाटीदार ने किया। सहयोग बादल धनगर, धीरज सगोरे, नागर, कन्हैया लाल फूलमाली और डॉ. मधुसूदन चौबे ने सहयोग किया।
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