बड़वानी~"मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा बड़वानी में "सिलसिला एवं तलाशे जौहर" के तहत मोहम्मद नईम क़ुरैशी एवं रौशन खां की याद में स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ आयोजित~~





बड़वानी~मध्य प्रदेश  उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में ज़िला अदब गोशा बड़वानी के द्वारा सिलसिला एवं तलाशे जौहर के तहत मोहम्मद नईम क़ुरैशी एवं रौशन खां की स्मृति में स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ का आयोजन 8 जुलाई 2023 को इक़रा भवन, बड़वानी में ज़िला समन्वयक सैयद रिज़वान अली के सहयोग से किया गया। 

उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बड़वानी मध्यप्रदेश का एक ऐसा ज़िला है जिसको साहित्यिक दृष्टि से बहुत समृद्ध नहीं माना जाता किन्तु जब उर्दू अकादमी इस ज़िले में पहुंची तो न केवल उल्लेखनीय दिवंगत विद्वानों और साहित्यकारों के नाम ज्ञात हुए बल्कि नए रचनाकारों की भी एक बड़ी सूची अकादमी को प्राप्त हुई। इस कार्यक्रम में आज ऐसे ही दो साहित्यकारों मोहम्मद नईम क़ुरैशी और रौशन खां दीवाना को याद किया गया साथ ही तलाशे जौहर के अंतर्गत तात्कालिक लेखन के माध्यम से कई नई प्रतिभाएं सामने आईं।
बड़वानी ज़िले के समन्वयक सैयद रिज़वान अली ने बताया कि स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ दो सत्रों पर आधारित था। प्रथम सत्र में दोपहर 3 बजे तलाशे जौहर प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें ज़िले के नये रचनाकारों ने तात्कालिक लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया। निर्णायक मंडल के रूप में बड़वानी के वरिष्ठ शायर खण्डवा के वरिष्ठ शायर डॉ हबीब हुबाब एवं बुरहानपुर के मशहूर शायर डॉ. जलीलुर रहमान मौजूद रहे जिन्होंने प्रतिभागियों शेर कहने के लिए दो तरही मिसरे दिए जो निम्न थे:

1. आख़िर इस दर्द की दवा क्या है (ग़ालिब) 
2. अब चराग़ों की ज़िम्मेदारी है (नज़र एटवी) 

उपरोक्त मिसरों पर नए रचनाकारों द्वारा कही गई ग़ज़लों पर एवं उनकी प्रस्तुति के आधार पर निर्णायक मंडल के संयुक्त निर्णय से समीर खान समीर ने प्रथम, शहज़ाद ख़ान हैदर ने द्वित्तीय एवं हफ़ीज़ अहमद हफ़ीज़ ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।
तीनों विजेताओं ने जो अशआर कहे वो निम्न हैं। 




हमने बस लौ जला के छोड़ दिया,
अब चरागों की ज़िम्मेदारी है।
समीर ख़ान समीर

बुझ गया है वो आफ़ताबे फ़लक
अब चराग़ों की ज़िम्मेदारी है।
शहज़ाद ख़ान हैदर।

मेरे काँधों से बोझ उतरा है
अब चराग़ों की ज़िम्मेदारी है।
हाफ़िज़ अहमद हाफ़िज़


दूसरे सत्र में शाम 5 बजे सिलसिला के तहत स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता बुरहानपुर के मशहूर शायर डॉ. जलीलुर रहमान ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉक्टर अब्दुल रशीद पटेल रिटायर्ड चीफ मेडिकल ऑफिसर एवं पूर्व जिला सदर, सैयद रिजवान अली वरिष्ठ पत्रकार,जिला पेंशनर अध्यक्ष विजय कुमार जैन अब्दुल सादिक चंदेरी समाजसेवी मुजीब कुरैशी एडवोकेट कुक्षी अनिल कुमार जोशी सर् अकरम खान न.पा. शौकत अली कुरेशी (साबिक सदर बड़वानी)
अब्दुल कदिर (उर्फ) बबलू पटेल (शहर सदर सुन्नत मुस्लिम जमात दारूल कजात बड़वानी) अब्दुल रहीम तिगाले(पार्षद) शौकत मंसूरी(अमन सांस्कृतिक मंच बड़वानी) कलीम मंसूरी (प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अल्पसंख्यक मोर्चा जिला बड़वानी) सगीर अहमद शेख साहब आदिल तीगालें (भाजपा अल्प संख्यक मोर्चा जिला अध्यक्ष, ज़िला बड़वानी) सूफी अख्तर मंसूरी अब्दुल सत्तार मंसूरी कार्यकारी जिला सदर बड़वानी उपस्थित रहे। इस सत्र के प्रारंभ में आरिफ़ अहमद आरिफ़ ने प्रसिद्ध शायरों मोहम्मद नईम क़ुरैशी और रौशन खां दीवाना के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
उन्होंने जहां मोहम्मद नईम क़ुरैशी की शायरी के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि मोहम्मद नईम क़ुरैशी साहब की शख्सियत किसी परिचय की मोहताज नहीं है।शायरी उनको विरासत में मिली।उनकी शायरी में हम्दो-नात, सलामो-मंक़बत का रंग खास तौर पर नुमायाँ है।शायरी एक मुश्किल फ़न है और यह मुश्किल फ़न और भी मुश्किल हो जाता है,जब हम्दो-नात, सलामो-मंक़बत जैसे पाकीज़ा अस्नाफ़े -सुख़न में तबअ आज़माई का मरहला दरपेश हो।ताहम उन्होंने पाकीज़गी के साथ इस सिन्फ़ को निभाया है।ज़िले में उनको उस्ताज़ुल- असातिज़ा का मक़ाम हासिल था।उनकी शायरी व इल्मी काबिलियत ज़िले व अतराफ़ में दूर तक फैली हुई थी। 
वहीं उन्होंने रौशन खां दीवाना की शायरी पर चर्चा आरती हुए कहा कि रोशन खां "दीवाना" को शेरो-अदब में खुदादाद सलाहिय्यत हासिल थी।गो कि ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं होने के बावजूद अदबी महफ़िलों और अदब नवाज़ों की सोहबत से उनको शायरी के आदाब सीखने को मिले।सादा अल्फ़ाज़ में अपनी बात को सलीके से कहने का हुनर और मुतरन्निम आवाज़ से ज़िले व अतराफ़ में प्रसिद्ध हुए।आम शब्दों में कहे आपके अशआर श्रोताओं के दिलों तक आसानी से पहुँच जाते थे। 
 


रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं :
अपने अपने तौर पर दोनों को जीना आ गया 
तुझको आंसू और मुझको ज़हर पीना आ गया 
डॉ. जलीलुर रहमान बुरहानपुर 

तुम अपने फूल से चेहरे को दो नक़ाब कोई 
कि लोग फिरते हैं आँखों में तितलियाँ ले कर 
डॉ. हबीब हुबाब खण्डवा 

इहाता कैसे करेगा कोई मिरे दिल का 
ये वो ज़मीन है जो आसमां से बाहर है 
अशफ़ाक़ निज़ामी, मारूल

हिज्र होता है मेरी जान पे बन आती है,
वस्ल से यार को सो बार शिकायत होगी!
आरिफ़ अहमद 'आरिफ़' बड़वानी

पुर ज़ोर हवा थी मगर गिरा न सकी
सहारा देने वालों ने मुझे कमज़ोर कर दिया
इस्लामुद्दीन 'हैदर' ओझर

मरीज़े इश्क़ को हरगिज़ शिफा नहीं मिलती
ये ऐसा मर्ज़ है जिसकी दवा नहीं मिलती
शुजाउद्दीन "बैबाक"

बस उसी दर्द में है लुत्फे़- बक़ा
दर्द जो "ऐन शीन क़ाफ़" में है 
वाजिद हुसैन 'साहिल' सेंधवा
 
मजाल क्या है किसी की के जो मुझे रोके। 
भटक रहा हूँ जहाँ पर, भटक रहा हूँ मैं ।
निज़ाम 'बाबा' सेंधवा

हाथ से हाथ सब मिलाते हैं।
दिल से दिल कोई भी मिला न सका।
जुनैद अहमद 'जुनैद'*l सेंधवा

नहीं सीख पाए कभी इश्क़ "आदिल"
इसी कार में बस ख़सारा रहा था।
विशाल त्रिवेदी 'आदिल' सेंधवा 

किसी की याद में आँसू निकल के आने लगे
दिलों से अरमां हमारे मचल के आने लगे
मुईन 'ख़ाकसार' पलसूद

ख़िरद को कौन क़ाबू में रखेगा
अगर हम जैसे दीवाने नहीं हों
वसीम 'रिलायबल' जुलवानिया

आप भी तंज़ कम नहीं करते
इसलिए बात हम नहीं करते
वाहिद क़ुरैशी 'वाहिद' राजपुर 

यादों की बस्ती है बसाई, तुम भी रहने आ जाना
बात हो जो भी दिल में तुम्हारे, मुझसे कहने आ जाना
सादिक़ 'ज़की' सेंधवा

लोगों के झूठ से भी बड़ा प्यार था उन्हें
लेकिन हमारे सच की कोई अहमियत न थी
पवन शर्मा हमदर्द सेंधवा

तुम्हें है प्यार अँधेरों से इसलिए तो कभी 
तुम्हारे गाँव में जुगनू नहीं निकलते हैं
सैयद रिज़वान अली 

गंगा जमुना तहजीब है निमाड़ का पेरिस बड़वानी में
                अपूर्वा शुक्ला
हम सब एक होकर हम सब हिंदुस्तानी 
शौकत मंसूरी अमन

कार्यक्रम का संचालन क़यामुद्दीन क़याम द्वारा किया गया। 

कार्यक्रम के अंत में ज़िला समन्वयक सैयद रिज़वान अली ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
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