धार , दशहरा पर्व अच्छाई की बुराई पर जीत का त्योहार के रूप में मनाए जाने वाला त्योहार है । इसी तिथि पर भगवान राम ने लंका नरेश रावण का वध किया था । दशहरे के त्योहार को विजयादशमी के नाम से जाना है ।
दशहरा पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि दिनांक 05 अक्टूबर को अपराह्न काल में मनाया जाएगा । अपराजिता पूजा अपराह्न काल में की जाती है । विजयादशमी पर अपराजिता का विशेष स्थान होता है ।
इस संदर्भ मे मालवा के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डाॅ. अशोक शास्त्री ने एक विशेष मुलाकात मे विस्तृत से बताया की आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर जो दिनांक 05 अक्टूबर बुधवार दशहरे का पर्व मनाया जाएगा । यह त्योहार हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है । दशहरा पर्व अच्छाई की बुराई पर जीत का त्योहार के रूप में मनाए जाने वाला त्योहार है । वहीं नवरात्रि मे माॅ दुर्गा ने 9 दिनों तक असुरों के स्वामी महिषासुर से युद्ध किया था । दशमी के दिन माॅ ने उस असुर का वध कर विजय प्राप्त की थी ।
डाॅ. अशोक शास्त्री के अनुसार इस विजयादशमी पर बहुत खास और दुर्लभ संयोग बन रहे है । ये शुभ योग रवि , सुकर्मा और धृति है । साथ श्रवण नक्षत्र का भी शुभ संयोग होने से इस दिन का बहुत महत्व है । इस योग मे पूजन पाठ से परिवार मे सुख समृद्धि बढेगी । वहीं लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से घर मे लक्ष्मी का वास बना रहता है । तथा सकारात्मक उर्जा का प्रभाव बढने लगता है ।
डाॅ. अशोक शास्त्री के मुताबिक दशहरा का पर्व एक अबूझ मुहूर्त है यानी इसमें बिना मुहूर्त देखे सभी तरह के शुभ कार्य और खरीदारी की जा सकती है । दशहरे पर्व पर शस्त्र पूजा भी की जाती है ।
विजयदशमी शुभ मुहूर्त
विजय मुहूर्त :02:11 से 02:57 तक
अवधि : 49 मिनट
अपराह्न मुहूर्त : 02:11 से 03:44 तक रहेगा ।
डाॅ. शास्त्री के अनुसार दशहरा पूजन 5 अक्टूबर बुधवार को दशमी तिथि विजय मुहूर्त के संयोग में भगवान श्रीराम , वनस्पति और शस्त्र पूजा करनी चाहिए । फिर इसके बाद दशहरे की शाम को रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है । ज्योतिष शास्त्र में विजयादशमी को अबूझ मुहूर्त माना गया है । यानी इस दिन सभी तरह के शुभ मुहूर्त संपन्न किए जा सकते हैं । इसके अलावा दशहरे पर जमीन - जायदाद की खरीदारी , सोने के आभूषण , कार , मोटर साइकिल और हर तरह की खरीदारी की जा सकती है ।
डाॅ. अशोक शास्त्री के अनुसार
विजयादशमी पूजा और महत्व
- दशहरा पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है । अपराजिता पूजा अपराह्न काल में की जाती है । विजयादशमी पर अपराजिता का विशेष स्थान होता है ।
- विजयादशमी पर घर के पूर्वी हिस्से की साफ - सफाई करके वहां पर चंदन का लेप लगाकर अष्टदल चक्र बनाएं ।
- इसके बाद देवी अपराजिता की पूजा करने का संकल्प लें ।
- फिर अपराजिताय नमः , जयायै नमःऔर विजयायै नमः मन्त्रों के साथ शोडषोपचार पूजा करें ।
- विजयादशमी पर शमी के पेड़ की पूजा का विधान होता है और विजय मुहूर्त में पूजा या शुभ कार्य करने विधान होता है । मान्यता है भगवान राम ने रावण का संहार करने के लिए इसी मुहूर्त में युद्ध का प्रारंभ किया था ।
- विजयादशमी पर आयुध (शस्त्र) की पूजा का विशेष महत्व होता है । इस दिन क्षत्रिय , योद्धा और सैनिक अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं । वहीं ब्राह्राण इस दिन मां सरस्वती की पूजा करते हैं ।
- इस दिन रामलीला मंचन का समापन होता है । रावण , कुंभकर्ण और मेधनाथ का पुतला जलाकर असत्य पर सत्य की जीत का पर्व मनाया जाता है ।
डाॅ. शास्त्री ने बताया की विजयादशमी पर रावण का पुतला जलाकर सत्य की असत्य के ऊपर जीत के जश्न के रूप में मनाया जाता है । पुराणों के अनुसार भगवान राम ने विजयादशमी पर युद्ध की शुरुआत की थी । इस तिथि पर भगवान राम ने धर्म की रक्षा और सत्य की जीत के लिए शस्त्र पूजा की थी । रावण का पुतला बनाकर विजया मुहूर्त में पुतले का भेदन करके युद्ध के लिए वानर सेना संग लंका की चढ़ाई की थी । तभी से हर साल विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है । दशहरे का उत्सव धर्म की रक्षा , शक्ति का प्रदर्शन और शक्ति का समन्वय का प्रतीक है । इसके अलावा दशहरा नकारात्मक शक्तियों के ऊपर सकारात्मक शक्तियों के जीत का प्रतीक है ।
*~~: शुभम् भवतु :~~*
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