झाबुआ~बच्चों में बढ़ रहा चिड़चिड़ापन-मोबाइल और टीवी को दे रहे ज्यादा समय-कोरोना काल से बिगड़ा टाइम मैनेजमेंट,5 मिनट के काम में लगा रहे 10 से 15 मिनट-10 में से 6 पालकों की यही शिकायत~~
बच्चों में गुस्सा, चिड़चिड़ापन, जिद व गुस्सा बढ़ गया है। वे पढ़ाई के बजाय मोबाइल व टीवी को ज्यादा समय दे रहे हैं। बच्चे अन्य कई मानसिक परेशानियों से भी घिरे हैं। यह सारे बदलाव कोरोना काल के बाद व स्कूल शुरू होने से ज्यादा हुए हैं। उनका टाइम मैनेजमेंट भी पूरी तरह बिगड़ गया है। 5 मिनट के काम को करने में वे 10 से 15 मिनट लगा रहे हैं। हर 10 में से 6 पालकों की यही शिकायत है। मनोवैज्ञानिक भी इस बात को मान रहे हैं। उनका कहना है काउंसलिंग ही इसका एकमात्र उपाय है।
बच्चों के उठने-बैठने के तरीके भी बदले हैं।.........................
बच्चों के उठने-बैठने के तरीके भी बदले हैं। टीवी देखते समय कुर्सी पर बैठे उन्हें पैर फैलाने के लिए सामने कुर्सी ,स्टूल या अन्य कोई चीज चाहिए। टीवी व मोबाइल देखते हुए खाने की आदत पड़ गई है। बच्चे हायपर एक्टिव हो रहे हैं। दिमाग में कुछ और बात चलने से हाथ-पैर हिलाते रहना, नाखून चबाना,किसी की कही बात को नहीं सुनना आदि परेशानियां भी आ रही है। हर छोटी बात पर गुस्सा होना भी बड़ी समस्या बन गई है। पालकों का कहना है समझाने पर भी कोई असर नहीं होता। कक्षा 11वीं के एक बच्चे के पिता ने कहा कही गई अधिकांश बातों पर बच्चे का ध्यान नहीं रहता। पानी मां मांगती है तो गिलास पिता को थमा देता है। कक्षा 7वीं के बच्चे की मां ने कहा बेटा पढ़ाई भले न करे लेकिन रिजल्ट को लेकर काफी कांसेस रहता है। कम अंक आने पर रोने लगता है। कुछ पालकों ने कहा छोटी सी बात के लिए बच्चे इमोशनली ब्लैकमेल करने के साथ धमकाने तक लगे हैं।
ये करें बच्चे,पालक और शिक्षक...................
*** बच्चे-यह मान लें कि सही ढंग से मानसिक विकास 20-22 साल तक होता है। इसलिए पालकों की हर बात को गंभीरता से लें। किसी भी बात पर रियेक्ट करते समय सोचें कि क्या तरीका सही है। इमोशन पर काबू रखें। गुस्से पर नियंत्रण बहुत जरूरी है। मोबाइल और टीवी को दिया जाने वाला समय कम से कम करें।
***पालक-बच्चे पर परीक्षा में अंक और अन्य किसी बात के लिए दबाव नहीं बनाएं। उनके इमेजिनेशन और इमोशन पर ध्यान दें। इससे किसी भी तरह की समस्या को समय पर रोका जा सकेगा। पढ़ाई के साथ कोशिश करें कि बच्चे घर के काम में भी हाथ बंटाएं। इससे उन्हें जिम्मेदारी का अहसास होगा। घर का माहौल खुशनुमा रखें।
***शिक्षक-पढ़ाने को लेकर कॉन्सेप्ट पूरी तरह क्लियर रखें। हर विषय को रोचक ढंग से पढ़ाएं। इससे पढ़ने में बच्चों की रूचि बढ़ेगी। पालकों के साथ ही शिक्षकों की भी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों के इमोशन और इमेजिनेशन पर पूरी तरह ध्यान दें। इससे उन्हें नई दिशा दी जा सकेगी।
इन बातों का भी पड़ रहा बच्चों पर असर...........................
-पालक परीक्षा के अंकों को लेकर ज्यादा गंभीर हैं। इसके लिए बच्चों पर दबाव डालते हैं।
-अन्य बच्चों से तुलना करना भी बड़ी समस्या है। परिवार में 2 बच्चों के बीच तुलना की जा रही है।
-बच्चे की शारीरिक या अन्य किसी कमी को बार-बार दोहराना।
- कार्टून सहित अन्य काल्पनिक सीरियल और फिल्में देखकर बच्चों के मन भी उसी तरह के गैजेट पाने की इच्छा जागती है।
-बच्चे अपने रोल मॉडल को फॉलो करते हैं। इसलिए उनके सामने सही बात और सही तरीके ही रखें।
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