झाबुआ~जमीन के अंदर बड़ा मटका भरेगा तो घर के बर्तन रीते नहीं रहेंगे-पर्यावरणविद् सुनील चतुर्वेदी~~
कल के लिए पेड़ लगाएं- सभी आज से ही छत का पानी बचाएं~~
झाबुआ।ब्यूरो चीफ-संजय जैन~~
पेड़ लगाने से भविष्य में हवा-पानी का लाभ अवश्य ही मिलेगा। यह कल के हिसाब से ठीक है,लेकिन जब चिंता आज की हो तो त्वरित उपाय भी जरूरी है।आज जिस तरह प्रदेश के कई जीके झाबुआ सहित गहराते पेयजल की समस्या से जूझ रहा है ,तो पूरे शहर की पहली प्राथमिकता यह तो बनती है कि बारिश के पानी को सहेजने के लक्ष्य पर काम वे अवश्य करे।अगले पखवाड़े तक मानसून दस्तक भी देने वाला है। सभी का प्रयास यह होना चाहिए कि बारिश का जो पानी छतों पर एकत्र होकर व्यर्थ बह जाता है उस ओर ध्यान देने की बेहद आवश्यकता है।
जिला प्रशासन को योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा....
शहर में खाली पड़े सैकड़ों प्लॉट पर एकत्र होने के बाद व्यर्थ बह जाने वाले पानी को भी उन प्लाटों पर गहरे गड्ढे खोद कर सीधे जमीन में उतारे जाने पर नगर पालिका और जिला प्रशासन को योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा। सिर्फ कागजों और शानदार फ़ोटो के साथ खबर भर चला देने से इसका हल हो ही नही सकता है।
जमीन के अंदर बड़ा मटका भरेगा तो घर के बर्तन रीते नहीं रहेंगे....
बीते तीन दशक से जल संरक्षण के लिए काम कर रहे सुनील चतुर्वेदी ने उपरोक्त सारी बात कही है। जनचेतना से देवास और झाबुआ में जलस्तर सुधार के कार्यों से इन शहरों का जल स्तर इंदौर जैसे शहर की अपेक्षा अधिक बेहतर बना चुके पर्यावरणविद् चतुर्वेदी को भारत सरकार मेदिनी पुरस्कार से भी सम्मानित कर चुकी है।अभ्यास मंडल की मासिक व्याख्यान माला में
‘जलवायु परिवर्तन के दौर में जल संरक्षण की आवश्यकता एवं महत्व’ विषय पर साधारण शब्दों में अपनी बात समझाने के साथ ही प्रबुद्धजनों के सवालों के जवाब में चतुर्वेदी ने कहा कि जमीन के नीचे जो मटका है,जब वो ठीक से भरने लगेगा तो पानी का संकट स्वत: दूर होता जाएगा।
21 महानगर पानी के क्राइसेस जोन में....
नीति आयोग के मुताबिक देश के 21 महानगर पानी के क्राइसेस जोन में हैं।चार दशक पहले झाबुआ में हमारे पास वाटर सोर्स कुए, तालाब, बावड़ी थी ,अब सब पर कॉलोनी कट गई है। । अभी प्रति व्यक्ति सौ लीटर पानी मिल रहा है जो 2030 में घट कर 50 लीटर 2050 में और कम हो जाएगा जिसकी पूरी संभावना साफ नजर आ रही है।
मैनेजमेंट ठीक नही.....
पृथ्वी की उम्र साढ़े चार अरब साल पर हम जलवायु परिवर्तन पर चिंता कर रहे हैं।चार दशक पहले मालवा में ऐसे गरम नहीं होते थे घर, हाथ का पंखा ही पर्याप्त रहता था। 120 साल में एक डिग्री तापमान बढ़ा है जो सदी के अंत तक 2-3 डिग्री बढ़ सकता है।जलवायु परिवर्तन हर तरह का इनबेलेंस पैदा करता है। 25 फीसदी कार्बन डायऑक्साइड का इजाफा हुआ है। पिछले तीन दशक में पानी का संकट बढ़ता जा रहा है। मौसम में बदलाव भी बढ़ा संकट है। जलवायु परिवर्तन में पानी का यह संकट जीवन, और खेती के लिए चुनौतीपूर्ण है। आज नौ सौ फीट पर भी पानी नहीं मिल रहा है। सौ साल में औसत बारिश तो वही है, बस उसका ट्रेंड बदल गया है। बारिश तो होती है पर हमारा मैनेजमेंट ठीक नहीं है।
बारिश के पानी सहजने की ओर नहीं किसीका ध्यान....
चार इंच बारिश में भी जीवन और खेती है। आज तक बारिश के पानी को सहेजने पर सोचा ही नहीं जा रहा है। हमें पता नहीं कि 1500 वर्गफुट पर बने मकान की छत पर बारिश के महीनों में कितना पानी आता है।डेढ़ लाख लीटर पानी हर छत पर आता है। मुश्किल से बीस हजार लीटर बचा पाते हैं।एक तरफ जल का संकट और दूसरी तरफ बारिश के पानी को सहेजने की चिंता नहीं है। जबकि इस पानी को जमीन में उतार कर जल स्तर बढ़ा सकता है। 1995 में देवास ने भी बैंगलुरु जैसा संकट भोग,लेकिन अब देवास में वो हालात नहीं है देवास में बारिश के पानी को जमीन में उतारने से हालात सकारात्मक हो चके है।
बारिश का पानी हार्डनेस खत्म करेगा....
बारिश का पानी बचाना होगा, ट्यूबवेल में बारिश का पानी डालना होगा। अभी जो पानी ट्यूबवेल से ले रहे हैं वो हार्ड वॉटर है, बारिश वाला सहेजा पानी स्वास्थ्य बेहतर करेगा। इस हार्डनेस को कम करने के लिए रैनवॉटर डालने से पानी की क्वालिटी सुधरेगी। जनता सॉकपिट भी ऐसा बनाए कि वह पानी पुरी तरह से सोख लेवे। तीसरा देशी तरीका है कि बारिश के पानी का पहले उपयोग करें, वॉटर टैंक में उस पानी को एकत्र करें। आर्किटेक्ट मकान की खूबसूरती पर काम करते हैं लेकिन वॉटर टैंक की जरूरत नहीं समझाते हैं। चिंता और चिंतन तो भरपूर करते हैं लेकिन काम नहीं करते।
दूषित पानी को जमीन में नहीं पहुंचने दे....
कवर्ड छत का पानी जमीन में पहुंचाना ठीक है ,लेकिन खुले स्थानों वाला पानी दूषित, कचरा, कार्बन, डीजल, ऑइल वाला पानी ग्राउंड वाटर में पहुच गया तो वह खराब हो जाएगा। ऐसे ग्राउंड वॉटर से बीमारियां बढ़ जाएंगी। कैंसर के साथ हड्डी गलने की शिकायत भी बढ़ जाएगी। दूषित पानी धीरे-धीरे मौत की तरफ ले जाता है।जलस्तर में सुधार की चिंता नहीं की तो 2030 में 30 फीसदी फूड प्रॉडक्शन कम हो जाएगा।
बड़ा कार्य पेड़ लगाना....
बड़ा काम है पेड़ लगाना है,पर इसका जवाब कौन देगा कि पिछले साल पचास हजार पेड़ अर्बनाइजेशन के लिए काट दिए गए। डेवलपमेंट के लिए सिर्फ एक तरफा सोच से काम नहीं चलेगा।बारिश के दौरान 6 फीसदी पानी भी जमीन में नहीं जाता।बारिश का पानी सीमेंट की सड़कें, घर के सामने पेवर्स लगा देने जैसे कारणों से भी जमीन के अंदर नहीं जा पाता।खाली प्लॉट पर पॉइल्स करा दें तो उस पानी को सहेजा जा सकता है। पानी जमीन के नीचे पहुंचाना चाहिए। बावड़ी, कुए, नदी साफ करना ठीक है लेकिन बावड़ियां बंद करना कतई अच्छी बात नहीं। ट्यूबवेल से पहले बावड़ी के पानी का उपयोग करना जरूरी समझें।
तीन हजार नदियां मर गईं,...
पुनासा डेम बन जाने के बाद पानी रुक गया है। नदिया उथली हो रही है।देश की पांच हजार नदियों में से तीन हजार नदियां मर चुकी हैं। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के साथ पेड़ लगाना सरल उपाय है।पेड़ लगाना अंतिम उपाय नहीं है। रैनवॉटर बचाने के लिए हमारी छत है।पेड़ लगाना अच्छी बात है कार्बन क्रेडिट के लिए भी यह ठीक है,लेकिन सबसे पहले बारिश के पानी को सहेजने पर काम किया जाना चाहिए।
अंत में आभार सुनील व्यास ने माना ...
अधिवक्ता-पूर्व पुलिस अधिकारी धर्मेंद्र चौधरी का कहना था जब सुनील भाई देवास के गांवों में काम करते थे, तब से उनके काम को देखता रहा हूं।उनके सुझाव और पानी को लेकर उनकी चिंता से मैं भी सहमत हूं।झाबुआ में पदस्थ रहने के दौरान मैंने पुलिस लाइन में इस दिशा में काम किए।तत्कालीन कलेक्टर नीरज मंडलोई ने मेरे काम को समर्थन दिया था। एसपी ऑफिस, बगीचा से मेरे घर में पानी संकट दूर हुआ और हैंडपंप जीवित हो गए है।वॉटर हार्वेस्टिंग लोग करवा लेते हैं लेकिन उसकी साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देते। आये दिन जिला प्रशासन, नगर पालिका को भी सुझाव दिए थे कि इस दिशा में भी लोगों को जागृत करें।
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